नाइवाएज्ज कंचणं
सबको जीवन प्रिय है, किसीके प्राणों का अतिपात नहीं चाहिये
सबको जीवन प्रिय है, किसीके प्राणों का अतिपात नहीं चाहिये
करणसत्य में रहनेवाला जीव जैसा बोलता है, वैसा ही करता है
रज्जा साध्वी ने सचित्त पानी पीया
रज्जा साध्वीजी को कोढ़ रोग हो गया था| एक साध्वीजी ने उससे पूछा कि यह रोग आपको कैसे हुआ? तब उसने कहा कि अचित्त (उबाला हुआ) पानी पीने से गर्मी के कारण यह रोग हुआ है| Continue reading “मुरझाये फूल जिन्होंने आलोचना नहीं ली” »
वीतरागता से स्नेह औ तृष्णा के बन्धन कट जाते हैं
हे पुरुष! तू सत्य को ही अच्छी तरह जान ले
राग : कित गुण भयो है उदासी बिहाग
भाव : विषय विलास = आत्म विनाश एना त्यागनी पावन प्रेरणा
मत बन विषय विलासी रे मनवा,
ए जबरी जग फांसी. रे मनवा.
हतस्त हरिण मच्छ भ्रमर पतंग,
एक एक विषयना आशी.
जो विचारपूर्वक परिमित और निर्दोष वचन बोलता है, वह सज्जनों के बीच प्रशंसा पाता है