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महर्षि और संयत

महर्षि और संयत

अणुए नावणए महेसी,
न यावि पूयं, गरिहं च संजए

जो पूजा पा कर भी अहंकार नहीं करता और निन्दा पाकर भी अपने को हीन नहीं मानता; वह संयत महर्षि है

महर्षि कौन? जिसमें न अहंकार हो न दीनता| संयत कौन? निन्दा और प्रशंसा में जो समभावी हो| Continue reading “महर्षि और संयत” »

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साधु-सम्पर्क

साधु सम्पर्क

कुज्जा साहूहिं संथवं

साधुओं से सम्पर्क रखना चाहिये

संस्तव का अर्थ है – परिचय, सम्पर्क या संगति|

संगति पूरे जीवन को प्रभावित करती है| वह उन्नति के द्वार खोल देती है| एक कीट – कितना साधारण जीवन होता है उसका? परन्तु फूलों के साथ रहकर भगवान की मूर्ति के सिरपर जा पहुँचता है वह| एक छोटी नदी या नाला गंगा के साथ मिलकर कहॉं जा पहुँचता है? रत्नाकर समुद्र में| Continue reading “साधु-सम्पर्क” »

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The Gods – Their Cars – Their Bells their Family – Part 2

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Real education is the key to success

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हिंसा के कारण

हिंसा के कारण

कुद्धा हणंति, लुद्धा हणंति, मुद्धा हणंति

क्रुद्धा लुब्ध और मुग्ध हिंसा करते हैं

प्रमादवश प्राणियों के प्राणों को चोट पहुँचाना हिंसा है| हिंसा से सदा दूसरों को दुःख होता है| मनुष्य क्यों दूसरों को दुःख देता है? क्यों हिंसा करता है? इस पर विचार करके ज्ञानियों ने तीन कारण बतलाये हैं| Continue reading “हिंसा के कारण” »

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भरत – बाहुबली

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बनी मिट्टी की सब बाजी

Listen to बनी मिट्टी की सब बाजी

राग : गझल
भाव : आत्मा एक सोनुं बाकी बधु माटी… माटे आत्मा दशानी शोधनो संदेश

बनी मिट्टीकी सब बाजी, उसीमें होत क्यों राजी
मिट्टी का है शरीर तेरा, मिट्टीका कपडा पहेरा;
मिट्टी का म्हेल रहा छाजी, उसीमें होत क्यों राजी.

…बनी. १

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The Fast-breaking of the Lord

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स्वपर-कल्याण में समर्थ

स्वपर कल्याण में समर्थ

अलमप्पणो होंति अलं परेसिं

ज्ञानी स्व-परकल्याण करने में समर्थ होते हैं

पत्थर की नाव स्वयं भी डूबती है और बैठनेवाले यात्रियों को भी डुबो देती है; किंतु जो नाव काष्ट की बनी होती है, वह स्वयं भी तैरती है और दूसरों को भी तिराती है| ज्ञानियों और अज्ञानियों में यही अन्तर है| अज्ञानी स्वयं तो संसार में भटकते ही हैं, साथ ही अपने आश्रितों को भी कुमार्ग बता कर भटकाते रहते हैं, किन्तु ज्ञानी न स्वयं भटकते हैं और न दूसरों को ही भटकाते हैं| Continue reading “स्वपर-कल्याण में समर्थ” »

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इसी क्षण को समझें

इसी क्षण को समझें

इणमेव खणं वियाणिया

प्रतिक्षण अपनी आयु ठीक उसी प्रकार क्षीण होती जा रही है, जिस प्रकार अञ्जलि में रहा हुआ जल क्षीण होता रहता है| धीरे-धीरे एक समय ऐसा आयेगा, जब आयु सर्वथा समाप्त हो जायेगी और हम अपनी अन्तिम सॉंस छोड़ कर सदा के लिए आँखें बन्द कर लेंगे| Continue reading “इसी क्षण को समझें” »

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