1 0
post icon

परिहास न करें

परिहास न करें

न यावि पे परिहास कुज्जा

बुद्धिमान को कभी उपहास नहीं करना चाहिये

रोग की जड़ खॉंसी! झगड़े की जड़ हँसी!! यदि द्रौपदी ने हँसी उड़ाते हुए दुर्योधन के लिए ऐसा नहीं कहा होता कि अन्धे के बेटे भी आखिर अन्धे ही होते हैं; तो शायद इतना बड़ा महाभारत युद्ध न हुआ होता| Continue reading “परिहास न करें” »

Leave a Comment
post icon

जीव विचार – गाथा 2

Sorry, this article is only available in English. Please, check back soon. Alternatively you can subscribe at the bottom of the page to recieve updates whenever we add a hindi version of this article.

Leave a Comment
post icon

उद्यापन – साल का नौवां कर्तव्य

उद्यापन   साल का नौवां कर्तव्य
सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र के, जिनालय के, पढ़ाई के, सामायिक, पौषध आदि के और साधु-साध्वीजी भगवंत के उपकरण इत्यादिको तैयार करके उद्यापन करना चाहिए| संसार में परिभ्रमण करानेवाले साधन को अधिकरण कहते हैं और मोक्षमार्गमें सहायक बनने वाले साधन को उपकरण कहते हैं| कपड़े धोने का डंडा अधिकरण और साधुका दंड उपकरण| Continue reading “उद्यापन – साल का नौवां कर्तव्य” »

Leave a Comment
post icon

उत्तम शरण

उत्तम शरण

धम्मो दीवो पइट्ठा य, गई सरणमुत्तमं

धर्म द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है और उत्तम शरण है

समुद्र में तैरते हुए जो व्यक्ति थक कर चूर हो जाता है, उसे द्वीप मिल जाये तो कितना सुख मिलेगा उससे ? धर्म भी संसार रूप सागर में तैरते हुए जीवों के लिए द्वीप के समान सुखदायक है| Continue reading “उत्तम शरण” »

Leave a Comment
post icon

प्रियकर प्रियवादी

प्रियकर प्रियवादी

पियंकरे पियंवाइ, से सिक्खं लद्धुमरिहइ

प्रिय करनेवाला और प्रिय बोलनेवाला अपनी शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ होता है

यदि कोई पशु या पक्षी प्यासा हो; तो उसे किसी जलाशय (सरिता, सरोवर, नाला आदि) के निकट जाना होगा| उसी प्रकार जिज्ञासु शिष्य को भी किसी गुरु के निकट जाना पड़ेगा; लेकिन ज्ञान की प्राप्ति के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है| Continue reading “प्रियकर प्रियवादी” »

Leave a Comment
post icon

अनाथ नाथ नहीं हो सकता

अनाथ नाथ नहीं हो सकता

अप्पणा अनाहो सन्तो,
कहं नाहो भविस्ससि?

तू स्वयं अनाथ है, तो फिर तू दूसरे का नाथ कैसे हो सकता है ?

यदि कोई यह समझता है कि मैं किसीका रक्षक हूँ – पालक हूँ – नाथ हूँ, तो यह उसका भ्रम है, क्योंकि इस दुनिया में कोई व्यक्ति किसीकी रक्षा या नाश नहीं कर सकता| व्यक्ति के अपने पूर्वार्जित शुभाशुभ कर्म ही उसका रक्षण और विनाश करते हैं| Continue reading “अनाथ नाथ नहीं हो सकता” »

Leave a Comment
post icon

सदा हंसमुख रह कर मधुर बोलो

सदा हंसमुख रह कर मधुर बोलो
जीवन में सुखी होने का महत्त्वपूर्ण एक सरल उपाय है, सदा हँसमुख रहकर मधुर भाषण करना| मुस्कराहट एक जादू मोहिनी मंत्र है| सुन्दर वस्त्राभूषण की अपेक्षा हँसमुख सूरत विशेष आकर्षक है| हँसमुखी प्रसन्न महिला दूसरों का नहीं, स्वयं अपना ही भला करती है| इससे सदा मन हलका रहता है और स्वास्थ्य पर बुरा असर नहीं पड़ता| Continue reading “सदा हंसमुख रह कर मधुर बोलो” »

Leave a Comment
post icon

पाप-पुण्य की बारी

Sorry, this article is only available in English. Please, check back soon. Alternatively you can subscribe at the bottom of the page to recieve updates whenever we add a hindi version of this article.

Leave a Comment
post icon

क्षमा-याचना – केवलज्ञान की सीढ़ी

क्षमा याचना   केवलज्ञान की सीढ़ी
जो व्यक्ति मृगावती या तो चंडरुद्राचार्य के शिष्य की तरह निर्विवाद क्षमा-याचना करते हैं, वे केवलज्ञान पाते हैं| धर्मसागर उपाध्याय की तरह छोटे-बड़े का भेद भूलकर क्षमा याचना करनेवाला सर्वत्र शांति और समाधि की सौरभ को फैला सकता है और संवत्सरी प्रतिक्रमण जैसी महान धर्मक्रिया को प्राणवन्त बना सकता है| Continue reading “क्षमा-याचना – केवलज्ञान की सीढ़ी” »

Leave a Comment
post icon

धन हो या न हो

धन हो या न हो

धणेण किं धम्मधुराहिगारे ?

धर्मधुरा खींचने के लिए धन की क्या आवश्यकता है? वहॉं तो सदाचार ही आवश्यक है

मनुष्य धन से धर्म अर्थात् परोपकार कर सकता है; परन्तु धर्म के लिए धन अनिवार्य नहीं है| साधु-सन्त गृहत्यागी होते हैं| उनके पास धन नहीं होता; फिर भी वे धर्मात्मा होते हैं| इतना ही क्यों ? वे धर्मप्रचारक होते हैं – धर्मोपदेशक होते हैं | तन-मन-जीवन को दूसरों की सेवा-सहायता में लगाना धर्म के लिए अनिवार्य हो सकता है, धन नहीं| Continue reading “धन हो या न हो” »

Leave a Comment
Page 41 of 67« First...102030...3940414243...5060...Last »