यदि कोई आत्मा कहती है कि आज इस काल में प्रायश्चित्त नहीं है, प्रायश्चित्त देने वाले नहीं है, इस प्रकार बोलने वाली आत्मा दीर्घसंसारी बनती है, क्योंकि नौवें पूर्व की तृतीय वस्तु में से उद्धृत आचार कल्प, व्यवहार सूत्र आदि प्रायश्चित्त के ग्रंथ एवं वैसे गंभीर गुरुवर आज भी विद्यमान हैं|
गुरुदेव से शुद्ध आलोचना लेने पर अपनी आत्मा हल्की हो जाती है, जैसे माथे से भार उतारने के पश्चात् भारवाहक स्वमस्तक अत्यंत हल्का महसूस करता है| वंदित्तु सूत्र में कहा है कि -
होई अइरेगलहुओ ओहरिय भरुव्व भारवहो