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आज भी प्रायश्चित्त विधि है

आज भी प्रायश्चित्त विधि है
यदि कोई आत्मा कहती है कि आज इस काल में प्रायश्‍चित्त नहीं है, प्रायश्‍चित्त देने वाले नहीं है, इस प्रकार बोलने वाली आत्मा दीर्घसंसारी बनती है, क्योंकि नौवें पूर्व की तृतीय वस्तु में से उद्धृत आचार कल्प, व्यवहार सूत्र आदि प्रायश्‍चित्त के ग्रंथ एवं वैसे गंभीर गुरुवर आज भी विद्यमान हैं|

गुरुदेव से शुद्ध आलोचना लेने पर अपनी आत्मा हल्की हो जाती है, जैसे माथे से भार उतारने के पश्‍चात् भारवाहक स्वमस्तक अत्यंत हल्का महसूस करता है| वंदित्तु सूत्र में कहा है कि -

कयपावो वि मणुस्सो आलोइय निंदिय गुरुसगासे|
होई अइरेगलहुओ ओहरिय भरुव्व भारवहो
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Motivational Wallpaper #46

ईश्वर से अधिक निकटतम कोई वस्तु नहीं

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1400×1050 1440×900
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Don’t judge a book by its cover

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भक्तामर स्तोत्र – श्लोक 1

भक्तामर स्तोत्र   श्लोक 1

भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा-
मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् |
सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादा-
वालम्बनं भवजले पततां जनानाम् || 1 ||

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गुणनाश के कारण

गुणनाश के कारण

चउहिं ठाणेहिं सन्ते गुणे नासेज्जा कोहेणं,
पडिनिवेसेणं, अकयण्णुयाए, मिच्छत्ताभिनिवेसेणं

मनुष्य में विद्यमान गुण भी चार कारणों से नष्ट हो जाते हैं – क्रोध, ईर्ष्या, अकृतज्ञता और मिथ्या आग्रह

कुछ कारण ऐसे हैं, जिनसे प्राप्त गुणों का भी नाश हो जाता है| उनमें से पहला कारण है – क्रोध| इससे व्यक्ति विवेकहीन हो जाता है – किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो जाता है| Continue reading “गुणनाश के कारण” »

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पर्युषण महापर्व – तीसरा दिन

पर्युषण महापर्व   तीसरा दिन

पर्वाणि सन्ति प्रोक्तानि, बहूनि श्री जिनागमे|
पर्युषणासमं नान्यत् कर्मणां मर्मभेदकृत्॥
दक्षिण ध्रुवमें कई सालोंसे बरफवर्षा होती है| इसलिए जमीन पर बरफ के ऐसे स्तर जमे हैं कि ५-६ माईल तक खुदाई करने पर भी जमीन का स्पर्श नहीं कर पाते| मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योगके कारण अनंतभवोंसे अपनी आत्मा पर भी लगातार कर्मोंकी वर्षा हो रही है| Continue reading “पर्युषण महापर्व – तीसरा दिन” »

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साध्वी यकिनी महत्तरा

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डरना नहीं चाहिये

डरना नहीं चाहिये

ण भाइयव्वं, भीतं खु भया अइंति लहुयं

डरना नहीं चाहिये| भीत के निकट भय शीघ्र आते हैं

डरता वही है, जो अपराधी है – पापी है – हत्यारा है| चोर और व्यभिचारी भी निरन्तर डरते रहते हैं कि कहीं कभी कोई उन्हें देख न ले – रंगे हाथों चोरी या व्यभिचार करते हुए पकड़ न ले| Continue reading “डरना नहीं चाहिये” »

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संयम और तप

संयम और तप

संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ

संयम और तप से आत्मा को भावित (पवित्र) करता हुआ साधक विहार करता है

राग-द्वेष, विषय-कषाय से कलुषित आत्मा किसी शरीर का आश्रय लेकर इस विशाल संसार में भटकती रहती है| उसका यह भवभ्रमण तब तक नहीं मिट सकता, जब तक उसका वह कालुष्य नहीं मिट जाता, जो उसे इस प्रकार भटकने को विवश करता रहता है| Continue reading “संयम और तप” »

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दुःख कोई बाँट नही सकता

दुःख कोई बाँट नही सकता

अस्स दुक्खं ओ न परियाइयति

कोई किसी दूसरे के दुःख को बाँट नहीं सकता

मनुष्य दुःखी इसलिए होता है कि वह प्रमादवश भूलें करता रहता है| दुःख भूलों का अनिवार्य परिणाम है| जो भूलें करेगा, वह इस परिणाम से नहीं बच सकेगा| Continue reading “दुःख कोई बाँट नही सकता” »

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