दुमं जहा खीणफलं व पक्खी
जैसे क्षीणफल वृक्ष को पक्षी छोड़ देते हैं, वैसे भोग क्षीणपुण्य पुरुष को छोड देते हैं
जैसे क्षीणफल वृक्ष को पक्षी छोड़ देते हैं, वैसे भोग क्षीणपुण्य पुरुष को छोड देते हैं
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बच्चों को आरंभिक संभाषण का वरदान माता-पिता से ही प्राप्त होता है| बच्चे बड़ों की बात सुन कर ही, बहुत कुछ सीखते हैं| अतएव जब आप उनसे बात करें, उन्हें खिलौना न समझकर एक व्यक्ति समझे| बच्चों में तर्क बुद्धि नहीं होती| वे अपने बड़े बूढ़ों की बात को ही सच समझते हैं| सुनी सुनाई बातों पर वे विश्वास कर लेते हैं|
बच्चों से बातचीत करते समय उसकी समझ तथा जानकारी का ध्यान अवश्य रखें| छोटे वाक्य, सरल भाषा तथा परिचित विषय चुनने चाहिए| बच्चे आपकी बोल-चाल की भाषा ही समझ सकते हैं|
बच्चों से बात-चीत करते समय जोर जोर से हंसना, धमका कर या चिल्लाकर बोलना, हंसी मजाक में अशिष्ट गन्दे शब्दों का प्रयोग, हाथ-मुँह बनाकर बातें करना आदि ढंग बुरे हैं| बच्चे इन दुर्गुणों की झट नकल कर लेते है| बात-चीत में दोष आ जाने से बच्चों का व्यक्तित्व प्रभाव-हीन हो जाता है| जल्दी-जल्दी बोलना कुछ तकिया कलाम यथा-समझे न, ‘हां तो’, ‘क्या समझे’, बड़े आये, ठीक है बड़े अच्छे, ठा पड़ी, कई नाम जो, आदि निरर्थक शब्दों का प्रयोग बच्चे सुन सुन कर ही सीख जाते है| इसी प्रकार हाथ हिला-हिला बात करना, मुँह फुलाना, आँखे झपकाना, कचर-कचर जल्दी-जल्दी कतरनी सी जीभ चलाना आदि दोष भी बच्चों मे देखा-देखी ही आ जाते हैं| अत: बच्चों के साथ माता-पिता को बड़ी ही सावधानी से संभाषण करना चाहिए|
श्री सुपार्श्वनाथ जिन स्तवन
Continue reading “वीतराग…! तोरा पाय शरणं” »
श्री पद्मप्रभु जिन स्तवन
राग : मनडुं किम हि न बाजे हो कुंथुजिन…
Continue reading “मनडुं हाथन आवे हो, पद्म प्रभ!” »
1. मेरे गर्भ में एक ऐसा जीवन पनप रहा है, जो कि महान् आत्मा होगा, उसके जीवन से लाखों का उपकार होगा, वह राष्ट्र और समाज का चमकता चांद होगा|
2. मेरी संतान गौर वर्ण, कमल नयन, अति सुन्दर, हृष्ट-पुष्ट, तेजस्वी और संयमी होगी| मेरा लाल आनन्दी, प्रसन्न मन और दृढ संकल्प का आदर्श नररत्न होगा| Continue reading “इच्छाशक्ति का मंत्र” »
राग : अरणीक मुनिवर चाल्या गोचरी
भाव : सुलसा महासतीना समकित-समता शील नी सुगंध
शील सुरंगीरे सुलसा महासती,
वर समकित गुण धारीजी;
राजगृही पूरे नाग रथिक तणी,
सुलसा नामे नारीजी.
अट्ठाई महोत्सव
देवताएँ प्रभुके जन्मादि कल्याणकों के उत्सव को मनाने के बाद छलकते प्रमोद-हर्षको सार्थक करने के लिए नंदीश्वर द्वीपमें जाकर अट्ठाई महोत्सव करते हैं| भगवानने बताई हुई पर्युषणआदि आराधना निर्विघ्न रूपसे बहुत ही उल्लास सभर संपन्न हुई| ससे उद्भवित हर्षको पूर्ण करने हेतु स्वयं या तो समस्त संघ इकट्ठा होकर अट्ठाई महोत्सव करता है| Continue reading “यात्रात्रिक – साल का तीसरा कर्तव्य” »