जहावाई तहाकारी या वि भवइ
करणसत्य में रहनेवाला जीव जैसा बोलता है, वैसा ही करता है
करणसत्य में रहनेवाला जीव जैसा बोलता है, वैसा ही करता है
वीतरागता से स्नेह औ तृष्णा के बन्धन कट जाते हैं
ज्यों-ज्यों लाभ होता है, त्यों त्यों लोभ होता है और लाभ से लोभ बढ़ता रहता है
सफलता से उत्साह बढ़ता है और विफलता से वह नष्ट हो जाता है| Continue reading “लाभ और लोभ” »
निरर्थक शिक्षा छोड़कर सार्थक शिक्षा ही ग्रहण करें
राग-द्वेष के क्षय से जीव एकान्तसुखस्वरूप मोक्ष को प्राप्त करता है
मनोज्ञ शब्दादि राग के और अमनोज्ञ द्वेष के कारण कहे गये हैं
कोमल प्रशंसात्मक शब्द हमें अच्छे लगते हैं और कठोर निन्दात्मक शब्द बुरे| Continue reading “राग द्वेष के कारण” »
सद्गुण-साधना का कार्य भुजाओं से समुद्र तैरने के समान है
धर्म के साधनों का विज्ञान से समन्वय करना चाहिये
चाहे भिक्षुक हो, चाहे गृहस्थ; जो सुव्रत है, वह स्वर्ग पाता है
पाप करनेवाला अपने ही कर्मों से पीड़ित होता है