आत्मा अकेला ही अपना दुःख भोगता है
दुःख अपनी भूल का एक अनिवार्य परिणाम है, जिसे प्रत्येक प्राणी भोगता है| अपना दुःख दूसरा कोई बँटा नहीं सकता| चाहे कोई कितना भी घनिष्ट मित्र हो, रिश्तेदार हो, कुटुम्बी हो- अपने दुःख में वे लोग सहानुभूति प्रकट कर सकते हैं – सेवा कर सकते हैं – सहायता कर सकते हैं, परन्तु हमारा दुःख वे छीन नहीं सकते – भोग नहीं सकते | उनके साध्यि से दुःख का वेग कुछ कम भले ही हो जाये; पर उसकी वेदना तो हमें ही भोगनी पड़ेगी|
फिर यह तो इस लोक की बात है; परलोक में तो सेवासहायता करनेवाला भी कोई नहीं मिलेगा| जीवन भर जो भी शुभाशुभ कर्म किये जाते हैं, वे आत्मा के साथ चिपकते जाते हैं और परलोक में उनके अनुसार सुफल-कुफल मिलता रहता है| वहॉं अपने किये पापों के परिणामस्वरूप मिलनेवाले सङ्कटों को-प्रतिकूलताओं को जीव स्वयं भोगता है| अतः पापों से बचिये | याद रखिये – पापी स्वयं ही भोगते हैं – अपना दुःख|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/5/2/22
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