महयं पलिगोव जाणिया, जा वि य वंदणपूयणा इहं
संसार में जो वन्दन पूजन (सन्मान) है, साधक उसे महान दलदल समझे
संसार में जो वन्दन पूजन (सन्मान) है, साधक उसे महान दलदल समझे
जो परिग्रह में व्यस्त हैं, वे संसार में अपने प्रति वैर ही बढ़ाते हैं
यदि जलस्पर्श (स्नान) से ही सिद्धि प्राप्त होती तो बहुत-से जलजीव सिद्ध हो जाते
आत्महित का अवसर मुश्किल से मिलता है
एक ही झपाटे में जैसे बाज बटेर को मार डालता है, वैसे ही आयु क्षीण होने पर मृत्यु भी जीवन को हर लेती है