बहुत अधिक न बोले
बहुत न बोलें
विषलिप्त कॉंटा
विसलित्तं व कंटगं नच्चा
विषलिप्त कॉंटे की तरह जानकर ब्रह्मचारी स्त्री का त्याग करे
वृद्धावस्था
ण रतीए, ण विभूसाए
वृद्ध होने पर व्यक्ति न हास-परिहास के योग्य रहता है, न क्रीड़ा के, न रति के और न शृंगार के ही
जीव विचार – गाथा 6
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भोगों का त्याग
दुमं जहा खीणफलं व पक्खी
जैसे क्षीणफल वृक्ष को पक्षी छोड़ देते हैं, वैसे भोग क्षीणपुण्य पुरुष को छोड देते हैं
अनन्त इच्छा
इच्छा आकाश के समान अनन्त होती है
इसलिए कि हम कुछ चाहते हैं|
इसका अर्थ?
अर्थ यही कि इच्छा स्वयं दुःख है! Continue reading “अनन्त इच्छा” »
मोह और दुःख
अनन्त संसार में मूढ बहुशः लुप्त (नष्ट) होते हैं
मैत्री करो
प्राणियों से मैत्री करो
अन्यथा मुक्ति नहीं
कृत कर्मों का (फल भोगे बिना) छुटकारा नहीं होता
वैर में रस न लें
तओ वेरेहिं रज्जति
वैरी वैर करता है और तब उसी में रस लेता है