साधक कामी बनकर कामभोगों की कामना न करे| उपलब्ध को भी अनुपलब्ध समझे| प्राप्त भोगों पर भी उपेक्षा करे|
कामों की कामना
कामी कामे न कामए, लद्धे वा वि अलद्ध कण्हुइ
काम-भोगों का त्याग कर के जो प्रवृजित हो जाते हैं – दीक्षित हो जाते हैं, उन्हें फिर से कामुक बनकर कामभोगों की कामना कभी नहीं करनी चाहिये और न उनकी प्राप्ति के लिए कोई प्रयत्न ही करना चाहिये| Continue reading “कामों की कामना” »
चार पुत्र
चत्तारि सुता-अतिजाते,
अणुजाते, अवजाते, कुलिंगाले
अणुजाते, अवजाते, कुलिंगाले
पुत्र चार प्रकार के होते हैं – अतिजात, अनुजात, अवजात और कुलांगार
न बद्ध, न मुक्त
कुसले पुण नो बद्धे, नो मुत्ते
कुशल पुरुष न बद्ध होता है, न मुक्त
खाने-पीने की मात्रा
माइ असणपाणस्स
खाने-पीने की मात्रा के ज्ञाता बनो
हँसते हुए न बोलें
न हासमाणो वि गिरं वएज्जा
हँसते हुए नहीं बोलना चाहिये
मोहग्रस्तता
इत्थ मोहे पुणो पुणो सा,
नो हव्वाए नो पाराए
नो हव्वाए नो पाराए
मोहग्रस्त व्यक्ति न इस पार रहते हैं, न उस पार
उच्च नीच गोत्र
से असइं उच्चागोए, असइं नीआगोए,
नो हीणे नो इहरित्ते
नो हीणे नो इहरित्ते
यह जीव अनेक बार उच्च गोत्रमें और अनेक बार नीच गोत्र में जन्म ले चुका है; परन्तु इससे न कोई हीन होता है, न महान|
भक्तामर स्तोत्र – श्लोक 5
सोहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश !
कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः |
प्रीत्यात्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्रं
नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ? ||5||
मोक्ष और निर्वाण
अगुणिस्स नत्थि मोक्खो,
नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं
नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं
गुणोंके अभाव में मोक्ष नहीं होता और मोक्षके अभाव में निर्वाण नहीं होता
बहुत न बोलें
बहुयं मा य आलवे
बहुत अधिक न बोले