कुशील (दुराचार) बढ़ानेवाले कारणों का दूर से ही त्याग करना चाहिये
शील का एक अर्थ आचरण भी है| इस दृष्टि से सदाचारी सुशील है, जो कुशील (दुराचार) से बचने और बचे रहने का प्रयास करता है|
कुशील से बचने के लिए ऐसे कारणों का त्याग करना पड़ता है, जिनसे कुशील में वृद्धि हो सकती है| बुरे व्यक्तियों अथवा दुराचारियों की संगति में रहने से व्यक्ति दुराचारी बन जाता है और लगातार ऐसी कुसंगति के अवसर आते रहें; तो उसके दुराचरण में क्रमशः वृद्धि होती रहती है|
दूसरा कारण है – दुष्टों एवं अत्याचारियों की ऐसी कहानियॉं सुनना, जिनमें उनकी सुख-समृद्धि का वर्णन किया गया हो| इससे दुराचारी बनने की प्रेरणा मिलती है|
ज्ञानी कहते हैं कि कुशील बनाने वाले या कुशीलता बढ़ाने वाले ऐसे कारणों को दूर से ही त्याग देना चाहिये|
- दशवैकालिक सूत्र 6/56
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