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अति मात्रा में नहीं लेते

अति मात्रा में नहीं लेते

नाइमत्तपाणभोयणभोई से निग्गंथे

जो अति मात्रा में अ-जल ग्रहण नहीं करता, वही निर्ग्रन्थ है

बहुत-से लोग हैं, जो स्वाद के लालच में ठूँस-ठूँस कर भोजन कर लेते हैं और फिर लम्बे समय तक बीमारी भोगते रहते हैं|

किसी ने ठीक ही कहा है कि हम जो कुछ खाते हैं, उसके दोतिहाई भाग से हम जीवित रहते हैं और शेष एकतिहाई भाग से डॉक्टर ! स्पष्ट है कि आवश्यकता से अधिक खाने पर पैदा होने वाली बीमारी का इलाज कराने में डॉक्टरों को जो फीस दी जाती है, उसी से वे जीवित रहा करते हैं|

यदि हम नियमित रूप से आवश्यक भोजन करें तो स्वास्थ्य हमारी मुट्ठी में रह सकता है| इसके लिए रसनेन्द्रिय को वश में रखने की आवश्यकता होगी| जो संयमी हैं – साधु हैं – निर्ग्रन्थ हैं, उनसे तो यह आशा की ही जा सकती है कि वे परिमित भोजन और आवश्यक जल ही ग्रहण करेंगे, स्वाद के लोभ में पड़ कर अधिक खाने-पीने की कोशिश नहीं करेंगे| इसीलिए कहा गया है कि निर्ग्रन्थ कभी अति मात्रा में अजल नहीं लेते|

- आचारांग सूत्र 2/3/15/14

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1 Comment

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  1. Bhavesh
    दिस॰ 2, 2011 #

    Very correctly said and so true.

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