बहुकम्मलेवलित्ताणं बोही
होइ सुदुल्लहा तेसिं
होइ सुदुल्लहा तेसिं
जो आत्माएँ बहुत अधिक कर्मों से लिप्त हैं, उनके लिए बोधि अत्यन्त दुर्लभ है
जो आत्माएँ बहुत अधिक कर्मों से लिप्त हैं, उनके लिए बोधि अत्यन्त दुर्लभ है
ऋजु या सरल आत्मा की शुद्धि होती है और शुद्ध आत्मा में ही धर्म ठहरता है
जो पूजा पा कर भी अहंकार नहीं करता और निन्दा पाकर भी अपने को हीन नहीं मानता; वह संयत महर्षि है
असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति होनी चाहिये
बुद्धिमान ज्ञान पा कर नम्र हो जाता है
किसी भी अन्य जीव को त्रास मत दो
सिंह के समान निर्भीक; केवल शब्दों से न डरिये
करणसत्य में रहनेवाला जीव जैसा बोलता है, वैसा ही करता है
वीतरागता से स्नेह औ तृष्णा के बन्धन कट जाते हैं
ज्यों-ज्यों लाभ होता है, त्यों त्यों लोभ होता है और लाभ से लोभ बढ़ता रहता है
सफलता से उत्साह बढ़ता है और विफलता से वह नष्ट हो जाता है| Continue reading “लाभ और लोभ” »