नवं कम्ममकुव्वओ
जो नये कर्मों का बन्धन नहीं करता, उसके पूर्वसञ्चित पापकर्म भी नष्ट हो जाते हैं
जो नये कर्मों का बन्धन नहीं करता, उसके पूर्वसञ्चित पापकर्म भी नष्ट हो जाते हैं
असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति होनी चाहिये
आतुर परिताप देते हैं
जिसने कांक्षा (आसक्ति) का अन्त कर दिया है, वह मनुष्यों का चक्षु है
बुद्धिमान ज्ञान पा कर नम्र हो जाता है
आत्मा अकेला ही अपना दुःख भोगता है
दुःख अपनी भूल का एक अनिवार्य परिणाम है, जिसे प्रत्येक प्राणी भोगता है| अपना दुःख दूसरा कोई बँटा नहीं सकता| चाहे कोई कितना भी घनिष्ट मित्र हो, रिश्तेदार हो, कुटुम्बी हो- अपने दुःख में वे लोग सहानुभूति प्रकट कर सकते हैं – सेवा कर सकते हैं – सहायता कर सकते हैं, परन्तु हमारा दुःख वे छीन नहीं सकते – भोग नहीं सकते | Continue reading “अपना दुःख” »
जो पराधीन होने से भोग नहीं कर पाते, उन्हें त्यागी नहीं कहा जा सकता
किसी भी अन्य जीव को त्रास मत दो
कामभोग अन्य हैं, मैं अन्य हूँ