अमुत्तभावा वि य होइ निच्चं
आत्मा आदि अमूर्त्त तत्त्व इन्द्रियग्राह्य नहीं होते और जो अमूर्त्त होते हैं, वे नित्य भी होते हैं
आत्मा आदि अमूर्त्त तत्त्व इन्द्रियग्राह्य नहीं होते और जो अमूर्त्त होते हैं, वे नित्य भी होते हैं
जो समय पर अपना काम कर लेते हैं, वे बाद में पछताते नहीं है
बिना पूछे कुछ भी नहीं बोलना चाहिये और पूछे जाने पर भी असत्य नहीं बोलना चाहिये
ज्ञानी और सदाचारी मृत्युपर्यन्त त्रस्त (भयाक्रान्त) नहीं होते
आस्रव को न जानने वाले संवर को कैसे जान सकते है?
बार बार चाबुक की मार खाने वाले गलिताश्व (अड़ियल टट्टू) की तरह कर्तव्यपालन के लिए बार-बार गुरुओं के निर्देश की अपेक्षा मत रखो
गुरुजनों की अवहेलना करनेवाला कभी बन्धनमुक्त नहीं हो सकता|
अनुज्ञा लेकर (ही कोई वस्तु) ग्रहण करनी चाहिये
साधना में संशय वही करता है, जो मार्ग में घर करना (ठहरना) चाहता है
जिसके निकट रह कर धर्म के पद सीखे हों, उसके प्रति विनयपूर्ण व्यवहार रखना चाहिये