जीवन की महत्ता…वेदनाओं, पीड़ाओं को उपेक्षा के साथ हँसते हँसते सह लेना में है
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बुद्धया विनाऽपि विबुधार्चित-पादपीठ!
स्तोतुं समुद्यत-मति-र्विगतत्रपोहम् |
बालं विहाय जल-संस्थितमिन्दुबिम्ब
मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ? ||3||
दुःख स्वकृत होता है, परकृत नहीं
गुरु भगवंत को विधिपूर्वक वन्दन करता हूँ… नमस्कार करता हूँ… सत्कार करता हूँ… सम्मान करता हूँ… Continue reading “गुरुदेव को वन्दन” »
रानी ने कहा, मदनसेना ! दाम्पत्य जीवन की दिव्यता-शोभा तभी है, जब कि पति-पत्नी सत्ता का मोह छोड़कर परस्पर सेवाभाव, त्यागवृत्ति को अपनाए| अब तुम पराये घर जा रही हो| ससुराल में देव, गुरु, धर्म, स्वधर्मी बन्धु, देवर जेठ नणंद-भोजाई, सास-ससुर, दीन-दु:खी, रोगी और अपने अड़ोस-पड़ोस की सेवा का सारा भार तुम्हारें पर है| इसे ठीक तरह से निभाना| Continue reading “मां की, बेटी को सीख” »
पहले जो जैसा कर्म किया गया है, भविष्य में वह उसी रूप में उपस्थित होता है
मेरी समता हर स्थिति में बनी रहे…..जो स्वीकार भाव की क्षमता को बढ़ा सकता है वही सुख-चैन से जी सकता है| Continue reading “समता रखो” »
क्रोधविजय क्षमा का जनक है