जो खा-पीकर आराम से सोता है, वह पापश्रमण कहलाता है
शक्तिशाली तो दुष्ट भी हो सकता है – अत्याचारी भी हो सकता है – डाकू भी हो सकता है; इसलिए जो अपनी शक्ति का सदुपयोग करता है अर्थात् अपनी शक्ति को दूसरों की सहायता में लगाता है – दुखियों के दुःख दूर करने में लगाता है – पतितों के उत्थान में लगाता है – दूसरों की भलाई करने में – सेवा करने में लगाता है, उसीका जीवन सफल होता है – यशस्वी होता है – प्रशंसनीय होता है|
बहुत-से लोग शक्ति का दुरुपयोग तो नहीं करते, पर अनुपयोग करते हैं| वे आलसी होते हैं| वे लोग जीने के लिए नहीं खाते; किंतु खाने के लिए जीते हैं| वे स्वादिष्ट वस्तुओं को प्राप्त करके उनका उपभोग करते हैं, खाते-पीते हैं और फिर लम्बी तान कर आराम से सोते हैं| ऐसे साधुओं को ‘‘पापश्रमण’’ कहा गया है|
- उत्तराध्ययन सूत्र 17/3
Very inspirational article. We should eat to live and not live to eat.