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क्रिया में रुचि

क्रिया में रुचि

किरियं च रोयए धीरो

धीर पुरुष क्रिया में रुचिवाला होता है

बच्चा इसलिए दूध नहीं पीता कि दूध से शरीर को पोषण मिलता है| वह तो केवल इसलिए पीता है कि उसे दूध मीठा लगता है, भाता है|

बालक या किशोर इसलिए नहीं खेलते कि खेलने से व्यायाम होता है और व्यायाम से शरीर पुष्ट होता है; किंतु वे तो केवल इसलिए खेलते हैं कि खेलने में उन्हें आनन्द आता है|

जीवन के प्रत्येक कार्य को इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिये| प्रयत्न कभी व्यर्थ नहीं जाता; इसलिए उसका फल तो मिलेगा ही; परन्तु स्वयं प्रयत्न में जो आनन्द आता है, उससे क्यों अपने को वञ्चित रखा जाये ?

उन दुर्भाग्यशालियों को कभी कार्य का आनन्द नहीं मिलता, जो कार्य को एक बोझ समझते हैं और सोचते है कि उन्हें अमुक कार्य करना पड़ रहा है| ऐसे व्यक्ति क्रिया में रुचि नहीं ले सकते|

जो रुचिपूर्वक कार्य नहीं करते, उनसे अच्छा कार्य हो भी नहीं सकता| धीर अर्थात् धैर्यशाली पुरुष अपने कार्यों में रुचि लेते हैं – उन्हें खेल समझकर करते हैं; इसलिए करने का आनन्द पाते हैं और सफलता का भी|

- उत्तराध्ययन सूत्र 18/33

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