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श्रुतशील-तप

श्रुतशील तप

कसाया अग्गिणो वुत्ता,
सुयसीलतवो जलं

कषाय अग्नि है तो श्रुत, शील और तप को जल कहा गया है

क्रोध, मान, माया और लोभ – ये चार कषाय हैं| अग्नि की तरह ये आत्मा को जलाते रहते हैं – अशान्त और क्षुब्ध बनाते रहते हैं| इनसे कैसे बचा जाये ? इसका उपाय इस सूक्ति में बताया गया है| Continue reading “श्रुतशील-तप” »

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दुर्लभ श्रद्धा

दुर्लभ श्रद्धा

श्रद्धा परमदुल्लहा

श्रद्धा अत्यन्त दुर्लभ है

धर्म पर श्रद्धा हो तो मनुष्य स्वार्थ का विचार किये बिना भी अपने कर्तव्य पर आरूढ़ हो सकता है| परन्तु यह श्रद्धा हो कैसे ? उसका आचार क्या हो ? Continue reading “दुर्लभ श्रद्धा” »

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एक ही गाथा से

एक ही गाथा से

सित्थेण दोणपागं, कविं च एक्काए गाहाए

एक कण से द्रोण-भर पाक की और एक गाथा से कवि की परीक्षा हो जाती है

वस्तु की परीक्षा उसके एक अंश को देखकर भी की जा सकती है| एक चावल को दबा कर यह जाना जा सकता है कि हँडिया भर चावल पके हैं या नहीं| इस जॉंच के लिए सब चावलों को दबाना आवश्यक नहीं है| Continue reading “एक ही गाथा से” »

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वैर-विरोध मत कीजिये

वैर विरोध मत कीजिये

न विरुज्झेज्ज केण वि

किसी के साथ वैर-विरोध मत करो

पूर्वजन्म में किये गये शुभाशुभ कर्मों के ही अनुसार इस जन्म में अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति प्राप्त होती है| भ्रम से लोग यह समझ बैठते हैं कि अमुक व्यक्ति हमारा विरोधी है – वैरी है और हमारे सारे कष्ट उसीके द्वारा पैदा किये हुए हैं, हमारी प्रतिकूल परिस्थिति का जन्मदाता भी वही है| परन्तु बात ऐसी नहीं है| Continue reading “वैर-विरोध मत कीजिये” »

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शस्त्र या अशस्त्र ?

शस्त्र या अशस्त्र ?

अत्थि सत्थं परेण परं|
नत्थि असत्थं परेण परं||

शस्त्र एक से एक बढ़कर हैं, परन्तु अशस्त्र (अहिंसा) एक से एक बढ़कर नहीं है

इस दुनिया में हिंसा के साधन अनेक हैं और वे एक से एक बढ़कर हैं| तलवार, भाला, तीर, बन्दूक, तोप, बम और परमाणुबम (हाइड्रोजन बम) क्रमशः भयंकर से भयंकर संहारक अस्त्र हैं| यदि राष्ट्रों की आँखों से स्वार्थान्धता की पट्टी न हटी; तो भविष्य में और भी भयंकर शस्त्रों के निर्माण की सम्भावना है| Continue reading “शस्त्र या अशस्त्र ?” »

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न अपनी आशातना करो न दूसरों की

न अपनी आशातना करो न दूसरों की

नो अत्ताणं आसाएज्जा, नो परं आसाएज्जा

न अपनी आशातना करो, न दूसरों की

जो लोग हीन-मनोवृत्ति के शिकार होते हैं – अपने को तुच्छतम समझते हैं, वे इस दुनिया में उन्नति नहीं कर सकते | उनमें अपना विकास करने का – प्रगतिपथ पर आगे बढ़ने का साहस तक नहीं हो सकता – जीवनभर वे अपने को अक्षम ही समझते रहते हैं और अक्षम ही बने रहते हैं| Continue reading “न अपनी आशातना करो न दूसरों की” »

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सूक्ष्म शल्य

सूक्ष्म शल्य

सुहुमे सल्ले दुरुद्धरे

सूक्ष्म शल्य बड़ी कठिनाई से निकाला जा सकता है

जो लोग पैदल चलते हैं, उन्हें मार्ग में कॉंटे चुभ जायें तो वे क्या करते हैं? दूसरे कॉंटे से अथवा सूई से निकाल लेते हैं| यद्यपि कॉंटा निकल जाने पर भी वेदना बनी रहती है, फिर भी कुछ समय बाद मिट जाती है और कुछ दिन बाद तो उसका छेद भी गायब हो जाता है| चमड़ीसे चमड़ी मिल जाती है| Continue reading “सूक्ष्म शल्य” »

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अतिवेल न बोलें

अतिवेल न बोलें

नाइवेलं वएज्जा

अधिक समय तक एवं अमर्याद न बोलें

‘वेला’ का अर्थ समय भी होता है और मर्यादा भी; इसलिए इस सूक्ति के दो अर्थ होते हैं| Continue reading “अतिवेल न बोलें” »

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निष्प्रयोजन हिंसा

निष्प्रयोजन हिंसा

अट्ठा हणंति, अणट्ठा हणंति

कुछ लोग प्रयोजन से हिंसा करते हैं और कुछ लोग बिना प्रयोजन ही

बहुत-से लोगों की यह आदत होती है कि यों ही चलते-चलते रास्ते में आये किसी पौधे को उखाड़ कर फैंक देते हैं – फूल को तोड़ कर मसल देते हैं – पेड़ की टहनी तोड़ कर हाथ में रख लेते हैं और कुछ दूर जाकर फैंक देते हैं| बहुत-सी महिलाएँ ऐसी होती हैं कि यों ही खड़ी-खड़ी अपने पॉंव के अंगूठे से जमीन कुरेदती रहती हैं| Continue reading “निष्प्रयोजन हिंसा” »

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प्रमाद मत कर

प्रमाद मत कर

समयं गोयम ! मा पमायए

हे गौतम! तू क्षण भर के लिए भी प्रमाद मत कर

गौतमस्वामी को, जो महावीर स्वामी के प्रधान शिष्य थे – प्रधान गणधर थे, यह प्रेरणा दी गई थी कि आत्मकल्याण के मार्ग में चलते हुए क्षण भर के लिए भी तू प्रमाद मत कर| Continue reading “प्रमाद मत कर” »

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