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श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म

श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म

दुविहे धम्मे-सुयधम्मे चेव चरित्तधम्मे चेव

धर्म के दो रूप हैं – श्रुतधर्म (तत्त्वज्ञान) और चारित्रधर्म (नैतिकता)

जब कोई मॉं यह चिल्लाती है – शिकायत करती है कि बेटा मेरी सुनता ही नहीं है तो क्या वह बेटे के बहरेपन का रोना रोती है? क्या उस पुत्र के कान नहीं है? क्या उसके कानों में सुनने की शक्ति नहीं है? Continue reading “श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म” »

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गुणाकांक्षा

गुणाकांक्षा

कङ्खे गुणे जाव सरीरभेऊ

जब तक शरीरभंग (मृत्यु) न हो तब तक गुणाकांक्षा रहनी चाहिये

जब तक शरीर नष्ट नहीं हो जाता अर्थात् मृत्यु नहीं हो जाती, तब तक हमें निरन्तर गुणों की कामना करते रहना चाहिये|

विषयों की तो सभी प्राणी कामना करते रहते हैं; किंतु विवेकी व्यक्ति गुणों की कामना करते हैं| Continue reading “गुणाकांक्षा” »

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