ज्ञानहीन व्यक्ति क्या करेगा? वह पुण्य पाप को कैसे जानेगा?
वस्तु को आंशिक रूप से न जानना देश-अज्ञान है, बिल्कुल न जानना सर्व-अज्ञान है और अमुक पर्याय के विषय में ज्ञान का अभाव भाव-अज्ञान है|
जिसमें अज्ञान होता है, वह अज्ञानी है | वह वस्तुतत्त्व को यथार्थ रूप से नहीं जान पाता| जिसकी दृष्टि में सम्यक्त्व है, वह ज्ञानी है| इसके विपरीत जिसकी दृष्टि में मिथ्यात्व है, वह अज्ञानी है |
जीवन को पवित्रता के पथ पर ले जाने के लिए नव तत्त्वों का सम्यग्ज्ञान आवश्यक है| जीव और अजीव की जानकारी होने पर व्यक्ति अहिंसक बन सकता है- संसार से विरक्त हो सकता है| इसी प्रकार पुण्य और पाप का स्वरूप समझकर वह आस्रवों का संवर एवं बन्ध की निर्जरा करके केवल ज्ञान के द्वारा मोक्ष पा सकता है| अज्ञानी के लिए यह सब दुर्लभ ही नहीं; बल्कि असंभव है| भला पुण्य और पाप की पहचान अज्ञानी क्या करेगा?
- दशवैकालिक सूत्र 4/10
No comments yet.
Leave a comment