वंतं इच्छसि आवेउं, सेयं ते मरणं भवे
वान्त पीना चाहते हो ? इससे तो तुम्हारा मर जाना अच्छा है
इसी प्रकार प्रव्रज्या अंगीकार करके जिन्होंने विषयभोगों का परित्याग कर दिया है; वे यदि पूर्वभुक्त विषयों का स्मरण करके उनके प्रति पुनः आकृष्ट होते हैं और विषयभोगों को पाना चाहते हैं; तो उनकी यह इच्छा थूक चाटने या वमन में निकले द्रव्य पदार्थ को पीने की इच्छा के समान ही घृणास्पद है- त्याज्य है| ऐसी इच्छा करने की अपेक्षा मर जाना अच्छा है|
ज्ञानियों ने वान्त को पूर्वभुक्त विषयों का उपमान बता कर साधकों के हृदय में उनके प्रति घृणा या अनासक्ति उत्पन्न करने का मार्मिक प्रयास किया है, जो प्रभावशाली है – प्रशंसनीय है| प्रत्येक साधक को इससे विषयविरक्ति की प्रेरणा लेनी चाहिये|
- दशवैकालिक सूत्र 2/7
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