सोहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश !
कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः |
प्रीत्यात्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्रं
नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ? ||5||
अर्थ :
हे मुनिजनों के आराध्यदेव ! यद्यपि आपके अनन्तगुणों का वर्णन करने की शक्ति मुझमें नहीं है, फिर भी आपकी भक्ति के वश हुआ, मैं स्तुति करने के लिए प्रवृत्त हो रहा हूँ| सभी जानते हैं, हरिणी कितनी ही दुर्बल क्यों न हो, किन्तु अपने छोने (शिशु) की रक्षा के लिए, (वात्सल्य भाव के वश हुई) आक्रमण करते हुए सिंह का मुकाबला करने के लिए सामने डट जाती है| इसी प्रकार मैं भी भक्तिवश हुआ अपनी शक्ति का विचार किये बिना स्तुति करने में प्रवृत्त हो रहा हूँ|
ऋद्धि : ॐ ह्रीँ अर्हँ णमो अणंतोहिजिणाणं|
मंत्र : ॐ ह्रीँ श्रीँ क्लीँ क्रौँ सर्वसंकटनिवारणेभ्यः सुपार्श्वयक्षेभ्यो नमो नमः स्वाहा|
विधि : इस स्तोत्र तथा रिद्धि मंत्र का जाप करके और यन्त्र पास रखके आँख की पीड़ा दूर होती हैं, जिसकी आँखें दर्द कर रही हो उसे पूरा दिन भूखा रखके, शाम के समय 21 बार आँख को मंत्रित करने से, आँख के सारे रोग दूर हो जाते हैं|
प्रभाव :आँख के सारे रोग दूर होते हैं|
संदर्भ
1. भक्तामर दर्शन – आचार्यदेव श्रीमदविजय राजयशसूरिजी
2. भक्तामर स्तोत्र – दिवाकर प्रकाशन
Plz send all riddhi ….mantra ..yantra everything
Hello,
Jay Jinendra,
Is it possible for you to share in PDF format the complete Bhaktamar Stotra.
What do I owe for getting the same ?
thanks.
umesh shah
You can read it on https://jainebooks.org