तं परिण्णाय मेहावी, इयाणिं णो,
जमहं पुव्वमकासो पमाएणं
जमहं पुव्वमकासो पमाएणं
मेधावी साधक को आत्मपरिज्ञान के द्वारा यह निश्चय करना चाहिये कि मैंने पूर्वजीवन में प्रमादवश जो कुछ भूल की है, उसे अब कभी नहीं करूँगा
मनुष्यमात्र भूल का पात्र है| व्यक्ति से भूलें हों – यह स्वाभाविक है; क्योंकि प्रमादवश वह भूलें करता ही रहता है; परन्तु एक भूल दुबारा करना अनुचित है – व्यक्ति की मूर्खता का प्रतीक है| भूल करना उतना बुरा नहीं है, जितना उसे दुहराना|
नई-नई भूलें करते और उन्हें सुधारते हुए धीरे-धीरे सम्पूर्ण जीवनशुद्धि का ध्येय प्राप्त हो सकता है; इसीलिए मेधावी साधक को स्वयं ही यह निश्चय कर लेना चाहिये कि कभी मैं अपनी भूल दुहराऊँगा नहीं|
- आचारांग सूत्र 1/1/4
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