कुशल व्यक्ति को प्रमाद नहीं करना चाहिये
परन्तु कभी-कभी आशा के विपरीत भी कार्य होते हैं| बुद्धिमान व्यक्ति भी प्रमाद के वशीभूत होते देखे गये हैं- इन्द्रियॉं बहुत प्रबल होती हैं – मन बहुत चंचल होता है – दुर्व्यसनों का सेवन बड़ा आकर्षक लगता है – लोभ पापों की ओर प्रेरित करता है – अभिमान कीर्ति और प्रशंसा से बढ़ता रहता है – माया दूसरों को धोखा देने में सन्तोष का अनुभव कराती है – क्रोध व्यक्ति को पागल या अन्धा बना देता है| इस प्रकार प्रमाद से घिरा हुआ मनुष्य संसार में भटकता रहता है और जन्म-जरा-मृत्यु के चक्कर में फँसा रहता है|
बुद्धिमान व्यक्तियों की ऐसी दुर्दशा देखकर ज्ञानियों को उन पर बड़ी दया आती है| वे उन्हें प्रतिबोध देते हैं| कहते हैं – यदि आप कुशल हैं; तो प्रमाद छोड़िये !
- आचारांग सूत्र 1/2/4
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