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मोहग्रस्तता

मोहग्रस्तता

इत्थ मोहे पुणो पुणो सा,
नो हव्वाए नो पाराए

मोहग्रस्त व्यक्ति न इस पार रहते हैं, न उस पार

संसार क्षणभंगुर है| इसकी प्रत्येक वस्तु अस्थायी है- अस्थिर है; इसलिए विषयवासना की सामग्री भी ऐसी ही है; जिसके प्रति मुग्ध हो कर प्राणी इधर-उधर भटकते रहते हैं|

इन्द्रियों के विषय प्राप्त करने के प्रयास में घोर परिश्रम करने पर भी प्राणियों को आखिर मिलता क्या है? उनसे जो सुख मिलता है, वह क्षणिक होता है, परन्तु उसकी प्राप्ति के लिए चिरकाल तक प्रयत्न करना पड़ता है| फिर इस क्षणिक वैषयिक सुख का अनुभव करानेवाली सामग्री पर क्यों मोह किया जाये ? कमसे-कम ज्ञानी तो ऐसा ही सोचते है| वे स्वयं भी मोह से दूर रहते हैं और दूसरों को भी मोह से दूर रहने का उपदेश देते रहते हैं|

कहते हैं, धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का| इसी प्रकार मोहग्रस्त व्यक्ति भी न इस पार रहता है और न उस पार | वह तो संसाररूपी समुद्र में डूबा रहता है और कष्ट पाता रहता है| कितनी कष्टदायक है यह मोहग्रस्तता|

- आचारांग सूत्र 1/2/2

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