सूरं मण्णइ अप्पाणं,
जाव जेयं न पस्सति
व्यक्ति तभी तक अपने को शूरवीर मानता है, जब तक विजेता को नहीं देख लेता
दुनिया में एक से बढ़कर एक लोग चारों ओर भरे पड़े हैं| कोई रूप में बड़ा है, कोई विद्या में – कोई धन में बड़ा है तो कोई शक्ति में|
शक्ति में भी कोई लाखों से बड़ा है; तो हजारों से छोटा भी हो सकता है; क्यों कि दुनिया बहुत बड़ी है| प्रत्येक सेर के लिए कहीं-न-कहीं सवासेर अवश्य मौजूद है| ऐसी अवस्था में आसपास के लोगों से अधिक योग्यता पा कर ही अपने को कोई यदि दुनिया में सबसे बड़ा मान बैठता है; तो यह उसकी भूल है| किसी दिन यदि उसे कोई अपने से बड़ा व्यक्ति मिल गया; तो उस दिन उसका सारा घमण्ड चूर-चूर हो जायगा| समझदार व्यक्ति इसीलिए कभी अपनी योग्यताओं का घमण्ड नहीं करते|
जो लोग ऐसा करते हैं, वे अविवेकी हैं| ऐसे लोग जब तक अपने से अधिक शक्तिशाली विजेता को नहीं देख लेते, तब तक अपने आप को शूरवीर मानते रहते हैं|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/3/1/1