1 0 Archive | सूत्रकृतांग सूत्र RSS feed for this section
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अपना दुःख

अपना दुःख

एगो सयं पच्चणुहोइ दुक्खं

आत्मा अकेला ही अपना दुःख भोगता है

दुःख अपनी भूल का एक अनिवार्य परिणाम है, जिसे प्रत्येक प्राणी भोगता है| अपना दुःख दूसरा कोई बँटा नहीं सकता| चाहे कोई कितना भी घनिष्ट मित्र हो, रिश्तेदार हो, कुटुम्बी हो- अपने दुःख में वे लोग सहानुभूति प्रकट कर सकते हैं – सेवा कर सकते हैं – सहायता कर सकते हैं, परन्तु हमारा दुःख वे छीन नहीं सकते – भोग नहीं सकते | Continue reading “अपना दुःख” »

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मैं अन्य हूँ

मैं अन्य हूँ

ए खलु कामभोगा, ओ अहमसि

कामभोग अन्य हैं, मैं अन्य हूँ

मधुर संगीत, सुन्दर दृश्य, इत्र, पुष्प हार, मिठाई, नमकीन, कोमल एवं शीतल वस्तु का स्पर्श आदि अनेक कामभागों की विविध आकर्षक सामग्री इस जगत में सर्वत्र बिखरी पड़ी है| Continue reading “मैं अन्य हूँ” »

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निन्दक भटकता है

निन्दक भटकता है

जो परिभवइ परं जणं,
संसारे परिवत्तई महं

जो दूसरे मनुष्य का परिभव (तिरस्कार) करता है, वह संसार में भटकता रहता है

सब मनुष्य एक से एक बढ़कर हैं| कोई इससे बड़ा है तो कोई उससे-कोई अमुक गुण में महान है तो कोई अमुक गुण में; इसलिए कभी किसी को अपने से तुच्छ मानने की भूल नहीं करनी चाहिये| Continue reading “निन्दक भटकता है” »

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सन्तोषी पाप नहीं करते

सन्तोषी पाप नहीं करते

सन्तोसिणो नो पकरेंति पावं

सन्तोषी पाप नहीं करते

लोभ पाप का मूल कारण है| ज्यों-ज्यों व्यक्ति लाभान्वित होता जाता है, त्यों-त्यों वह अधिक से अधिक पापमार्ग में प्रवृत होता जाता है; क्यों कि लाभ के अनुपात में उसका लोभ बढ़ता रहता है, जो अनुचित एवं अन्यायपूर्ण कार्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करता रहता है| Continue reading “सन्तोषी पाप नहीं करते” »

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धर्मानुकूल आजीविका

धर्मानुकूल आजीविका

धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति

सद्गृहस्थ धर्मानुकूल ही आजीविका करते हैं

जीवित रहने के लिए अन्न और जल चाहिये – कुटुम्ब का पोषण करने के लिए धन चाहिये| मुनियों की बात दूसरी है; परन्तु जो गृहस्थ है, उन्हें तो इस संसार में पद पद पर सम्पत्ति की आवश्यकता होती है| कहते हैं – जिस मुनि के पास कौड़ी (एक पैसा भी) हो, वह कौड़ी का और जिस गृहस्थ के पास कौड़ी न हो, वह भी कौड़ी का ! Continue reading “धर्मानुकूल आजीविका” »

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उत्तम तप

उत्तम तप

तवेसु वा उत्तमं बंभचेरं

ब्रह्मचर्य तपों में उत्तम है

परमार्थ के लिए या आत्मकल्याण के लिए जो विविध कष्टों में सहिष्णुता का परिचय दिया जाता है, वही तपस्या है| शास्त्रों में दो प्रकार की तपस्या का वर्णन आता है – बाह्य तप और अभ्यन्तर तप| अनशन, ऊनोदरी, वृत्तिसंक्षेप, रसपरित्याग, कायक्लेश और प्रतिसंलीनता – ये छः बाह्यतप हैं और प्रायश्‍चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान एवं कायोत्सर्ग ये छः अभ्यन्तर तप| साधक दोनों प्रकार के तप करता है| Continue reading “उत्तम तप” »

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शूरम्मन्य

शूरम्मन्य

सूरं मण्णइ अप्पाणं,
जाव जेयं न पस्सति

व्यक्ति तभी तक अपने को शूरवीर मानता है, जब तक विजेता को नहीं देख लेता

दुनिया में एक से बढ़कर एक लोग चारों ओर भरे पड़े हैं| कोई रूप में बड़ा है, कोई विद्या में – कोई धन में बड़ा है तो कोई शक्ति में|

शक्ति में भी कोई लाखों से बड़ा है; तो हजारों से छोटा भी हो सकता है; क्यों कि दुनिया बहुत बड़ी है| प्रत्येक सेर के लिए कहीं-न-कहीं सवासेर अवश्य मौजूद है| ऐसी अवस्था में आसपास के लोगों से अधिक योग्यता पा कर ही अपने को कोई यदि दुनिया में सबसे बड़ा मान बैठता है; तो यह उसकी भूल है| किसी दिन यदि उसे कोई अपने से बड़ा व्यक्ति मिल गया; तो उस दिन उसका सारा घमण्ड चूर-चूर हो जायगा| समझदार व्यक्ति इसीलिए कभी अपनी योग्यताओं का घमण्ड नहीं करते|

जो लोग ऐसा करते हैं, वे अविवेकी हैं| ऐसे लोग जब तक अपने से अधिक शक्तिशाली विजेता को नहीं देख लेते, तब तक अपने आप को शूरवीर मानते रहते हैं|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/3/1/1

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मायामृषावाद

मायामृषावाद

सादियं न मुसं बूया

मन में कपट रखकर झूठ नहीं बोलना चाहिये

झूठ बोलना बुरा है; परन्तु उसकी बुराई की मात्रा का निर्णय तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक यह पता नहीं लग जाता कि झूठ बोलने का कारण और प्रयोजन क्या है| Continue reading “मायामृषावाद” »

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जीव और शरीर

जीव और शरीर

ओ जीवो अं सरीरं

जीव अन्य है, शरीर अन्य

‘‘मैं’’ शब्द से आत्मा या जीव का प्रत्यभिज्ञान होता है; इसलिए कुछ लोग ‘‘मै अन्धा हूँ’’ आदि प्रयोग देखकर इन्द्रियों को ही आत्मा मान बैठते हैं| कुछ लोग ‘‘मैं दोड़ता हूँ’’, ‘‘मैं बीमार हूँ’’, ‘‘मैं कपड़े धोता हूँ’’, ‘‘मैं स्नान करता हूँ’’, आदि प्रयोगों के आधार पर शरीर को ही आत्मा मान लेते हैं| Continue reading “जीव और शरीर” »

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तप से पूजा की कामना न करें

तप से पूजा की कामना न करें

नो पूयणं तवसा आवहेज्जा

तप के द्वारा पूजा (प्रतिष्ठा) की अभिलाषा नहीं करनी चाहिये

कल्पना कीजिये – एक नौका में बैठकर कुछ यात्री नदी पार कर रहे हैं| वे देखते हैं कि नौका में पानी भरने लगा है और इससे धीरे-धीरे नौका डूबने की सम्भावना पैदा हो गई है| वे तत्काल नौका के छिद्रों को ढूँढते हैं, जहॉं से पानी भीतर प्रवेश कर रहा है| Continue reading “तप से पूजा की कामना न करें” »

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