वैराइं कुव्वइ वेरो,
तओ वेरेहिं रज्जति
तओ वेरेहिं रज्जति
वैरी वैर करता है और तब उसी में रस लेता है
इससे भी भयंकर बात यह है कि कुछ व्यक्ति स्वभाव से ही वैरी होते हैं| उन्हें तब तक भोजन ही हजम नहीं होता, जब तक वे पड़ौस में या अन्यत्र जा कर कोई-न-कोई झगड़ा नहीं कर आते| वे भ्रम से यह समझते हैं कि झगड़ने और उसमें जीतने से ही कुटुम्बी और अन्य लोगों में हमारी धाक जमेगी, प्रतिष्ठा बढ़ेगी; परन्तु वास्तविकता यह है कि ऐसे झगड़ालुओं से लोग दूर रहना चाहते हैं| अपना काम निकालने के लिए धूर्त या चापलूस लोग भले ही उनकी वीरता की प्रशंसा कर दें; परन्तु ऐसे लोगों से सच्चे हृदय से प्रेम नहीं कर सकते | प्रेम प्रेमी से ही मिल सकता है और प्रेमी को ही मिल सकता है, वैरी को या वैर में रस लेनेवाले को नहीं|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/8/7
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