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वैर में रस न लें

वैर में रस न लें

वैराइं कुव्वइ वेरो,
तओ वेरेहिं रज्जति

वैरी वैर करता है और तब उसी में रस लेता है

खून का दाग खून से नहीं धुलता| वह पानी से ही धुल सकता है| उसी प्रकार वैर से कभी वैर नष्ट नहीं हो सकता| वह शान्ति से – क्षमा से – सहिष्णुता से – प्रेम के प्रयोग से ही नष्ट हो सकता है|परन्तु कुछ लोग ऐसे हैं, जो वैर को वैर से नष्ट करना चाहते हैं| ऐसे लोग आग को घासलेट से बुझाना चाहते हैं, पानी से नहीं| कैसी मूर्खता है?

इससे भी भयंकर बात यह है कि कुछ व्यक्ति स्वभाव से ही वैरी होते हैं| उन्हें तब तक भोजन ही हजम नहीं होता, जब तक वे पड़ौस में या अन्यत्र जा कर कोई-न-कोई झगड़ा नहीं कर आते| वे भ्रम से यह समझते हैं कि झगड़ने और उसमें जीतने से ही कुटुम्बी और अन्य लोगों में हमारी धाक जमेगी, प्रतिष्ठा बढ़ेगी; परन्तु वास्तविकता यह है कि ऐसे झगड़ालुओं से लोग दूर रहना चाहते हैं| अपना काम निकालने के लिए धूर्त या चापलूस लोग भले ही उनकी वीरता की प्रशंसा कर दें; परन्तु ऐसे लोगों से सच्चे हृदय से प्रेम नहीं कर सकते | प्रेम प्रेमी से ही मिल सकता है और प्रेमी को ही मिल सकता है, वैरी को या वैर में रस लेनेवाले को नहीं|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/8/7

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1 Comment

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  1. swati shah
    दिस॰ 23, 2012 #

    Jainisum knowledge is right way to teach to walk in right direction in our life.thanx for knowledge.

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