post icon

सम्यग्दृष्टि में स्थिरता

सम्यग्दृष्टि में स्थिरता

से दिट्ठिमं दिट्ठि न लूसएज्जा

सम्यग्दृष्टि साधक को सत्यदृष्टि का अपलाप नहीं करना चाहिये

जिसकी दृष्टि सम्यक् है, उसे कभी अपनी दृष्टि को शिथिल नहीं करना चाहिये| एक बार जिस व्यक्ति का जैसा दृष्टिकोण बन जाता है, उसे वैसा ही दिखाई देता है| कहावत है – ‘सावन के अन्धे को सदा हरा ही हरा सूझता है’ आशय यह है कि जो व्यक्ति सावन महीने में चारों ओर फैली हुई प्राकृतिक हरियाली देख रहा है, वह यदि उसी मास में दृष्टि खो बैठे अर्थात् किसी दुर्घटनावश अंधा हो जाये तो क्या होगा? वह बारहों मास सर्वत्र वैसी ही हरियाली देखता रहेगा; किन्तु क्या उसकी दृष्टि यथार्थ है? नहीं|

जिसकी दृष्टि सम्यक् होती है, वह जानता है कि जो वस्तु जिस समय जहॉं जैसी है, वह अन्य समय में अन्यत्र भी वैसी ही होगी – ऐसा निश्‍चित रूप से नहीं कहा जा सकता| दस वर्ष के पहले जिस शिशु के मुँह में दॉंत तक नहीं थे और जो घुटनों के बल पर भी मुश्किल से ही चल पाता था, आज वह अपने दॉंतों से चबाकर रोटी खाने लगता है और दौड़ने लगता है; क्यों कि वस्तुएँ परिवर्त्तनशील हैं| सम्यग्दृष्टि साधक इसीलिए कभी दुराग्रही नहीं होता और न मिथ्यादृष्टि दुराग्रहियों से वह प्रभावित ही होता है| अपने सम्यक्त्व पर वह टिका रहता है|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/14/25

Did you like it? Share the knowledge:

Advertisement

No comments yet.

Leave a comment

Leave a Reply

Connect with Facebook

OR