जेहिं काले परक्कंतं,
न पच्छा परितप्पए
न पच्छा परितप्पए
जो समय पर अपना काम कर लेते हैं, वे बाद में पछताते नहीं है
जो परीक्षार्थी वर्षभर पाठ्यपुस्तकों का अध्ययन न करे और यही सोचकर उन पर उपेक्षा करता रहे कि अभी तो परीक्षा बहुत दूर है – सालभर पड़ा है – ग्यारह महीने पड़े हैं – दसमास बाकी है … दो महीने पड़े हैं – पूरे तीस दिन शेष हैं – बीस दिन हैं – अभी चौबीस घण्टे पड़े हैं! कभी भी पुस्तकें पढ़ लूँघा – अभी जल्दी क्या है? और अपना समय खेल-कूद में, गप्पों में बिताता रहे, क्या वह विद्यार्थी कभी पास हो सकता है ?
इसीलिए ज्ञानियों ने कहा है, अपने सामने जो भी कर्त्तव्य खड़ा हो, उसे बिना अलसाये समय पर पूरा कर डालिये जिससे पछताना न पड़े|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/3/4/15
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