सव्वेसिं जीवियं पियं,
नाइवाएज्ज कंचणं
नाइवाएज्ज कंचणं
सबको जीवन प्रिय है, किसीके प्राणों का अतिपात नहीं चाहिये
जब जीवन इतना मूल्यवान् है, तब तुच्छ स्वार्थ के लिए हमें क्यों किसी के प्राणों का वध करना चाहिये? क्यों हिंसा के द्वारा पाप का उपार्जन कर अपनी आत्मा को कलुषित करना चाहिये? ज्ञानियों के अनुसार सबके लिए श्रेयस्कर यही है कि ‘जीवन सबको प्रिय है’ – ऐसा जानकर हम कभी किसी प्राणी की हिंसा न करें!
- आचारांग सूत्र 1/2/3
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