1 0 Tag Archives: जैन सूत्र
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चार श्रावक

चार श्रावक

चत्तारि समणोवासगा-अद्दागसमाणे,
पडागसमाणे, ठाणुसमाणे, खरकंटगसमाणे

श्रमणोपासक चार प्रकार के होते हैं – दर्पण के समान (स्वच्छ हृदय वाले), पताका के समान (चञ्चल हृदय वाले), स्थाणु के समान (दुराग्रही) और तीक्ष्ण कण्टक के समान (कटुभाषी)

श्रमणों के प्रति श्रद्धा रखने वाले – उनकी उपासना करने वाले श्रमणोपासक या श्रावक कहलाते हैं| Continue reading “चार श्रावक” »

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इच्छानिरोध

इच्छानिरोध

छंदं निरोहेण उवेइ मोक्खं

इच्छाओं को रोकने से ही मोक्ष प्राप्त होता है

इच्छाएँ अनन्त हैं| एक इच्छा को पूरी करें; तो दूसरी पैदा हो जाती है| फिर दूसरी के बाद तीसरी, तीसरी के बाद चौथी और चौथी के बाद पॉंचवी अर्थात् एक के बाद एक इच्छा उत्पन्न होती ही रहती है | प्राणी उसकी पूर्ति को लिए दौड़धूप करता ही रहता है और एक दिन अन्तिम सॉंस छोड देता है| Continue reading “इच्छानिरोध” »

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आत्महित का अवसर

आत्महित का अवसर

अत्तहियं खु दुहेण लब्भइ

आत्महित का अवसर मुश्किल से मिलता है

इस संसार में पत्थर बहुत हैं, हीरे कम-कुत्ते बहुत हैं, हाथी कम-सियार बहुत हैं, सिंह कम – नीम के पेड़ बहुत हैं, आम के कम – कङ्कर बहुत हैं, मोती कम – दुर्जन बहुत हैं, सज्जन कम| Continue reading “आत्महित का अवसर” »

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आयु घट रही है|

आयु घट रही है|

सेणे जह वट्टयं हरे, एवं आउखयंमि तुट्टइ

एक ही झपाटे में जैसे बाज बटेर को मार डालता है, वैसे ही आयु क्षीण होने पर मृत्यु भी जीवन को हर लेती है

सारा संसार मृत्यु का भोजन है| कुछ उसके मुँह में है, तो कुछ गोद में या हथेली में| जिसकी अवस्था शेष है – जिसकी आयु अभी पूर्ण नहीं हुई है, वह जीवित भले ही रहे, लेकिन एक दिन उसकी मृत्यु निश्‍चित है| Continue reading “आयु घट रही है|” »

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दुरुक्त कैसा होता है ?

दुरुक्त कैसा होता है ?

वाया दुरुत्ताणि दुरुद्धराणि,
वेराणुबंधीणि महब्भयाणि

वाणी से बोले हुए दुष्ट और कठोर वचन जन्मजन्मान्तर के वैर और भय के कारण बन जाते हैं

सूक्त का विलोम शब्द दुरुक्त है| सूक्त अच्छा वचन है – जीवनशुद्धि का प्रेरक है तो दुरुक्त बुरा वचन है – हार्दिक क्षोभ का प्रेरक है – कलह कारक है| Continue reading “दुरुक्त कैसा होता है ?” »

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विरक्त साधक

विरक्त साधक

विरता हु न लग्गंति,
जहा से सुक्कगोलए

मिट्टी के सूखे गोले के समान विरक्त साधक कहीं भी चिपकता नहीं है

मिट्टी का गीला गोला यदि दीवार पर फैंका जाये; तो वह दीवार से चिपक जायेगा; क्यों कि जल से मिट्टी में चिपकने का गुण पैदा हो जाता है| Continue reading “विरक्त साधक” »

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अनुभव से सच्चाई खोजो

अनुभव से सच्चाई खोजो

अप्पणा सच्चमेसेज्जा

स्वयं सत्यान्वेषण करना चाहिये

कहावत है – ‘‘मुण्डे मुण्डे मतिर्भिना’’ अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति की बुद्धि अलग-अलग होती है, इसलिए प्रत्येक के विचार भी अलग-अलग होते हैं| Continue reading “अनुभव से सच्चाई खोजो” »

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श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म

श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म

दुविहे धम्मे-सुयधम्मे चेव चरित्तधम्मे चेव

धर्म के दो रूप हैं – श्रुतधर्म (तत्त्वज्ञान) और चारित्रधर्म (नैतिकता)

जब कोई मॉं यह चिल्लाती है – शिकायत करती है कि बेटा मेरी सुनता ही नहीं है तो क्या वह बेटे के बहरेपन का रोना रोती है? क्या उस पुत्र के कान नहीं है? क्या उसके कानों में सुनने की शक्ति नहीं है? Continue reading “श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म” »

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