वान्त पीना चाहते हो ? इससे तो तुम्हारा मर जाना अच्छा है
विषय-विरक्ति
वंतं इच्छसि आवेउं, सेयं ते मरणं भवे
थूक को चाटना किसे अच्छा लगता है ? कै (वमन) में मुँह से बाहर निकली वस्तु को भला कौन पीना चाहेगा? कोई नहीं| थूक और वान्त से सभी घृणा करते हैं और इन्हें पुनः उदरसात् करने की अपेक्षा मर जाना अच्छा समझते हैं| Continue reading “विषय-विरक्ति” »
अनेकान्तवादी बनें
विभज्जवायं च वियागरेज्जा
स्याद्वाद से युक्त वचनों का प्रयोग करना चाहिये
‘स्याद्वाद’ एक दार्शनिक सिद्धान्त है| ‘स्यात्’ का अर्थ अपेक्षा है; इसलिए इसे सापेक्षवाद भी कह सकते हैं| वैसे किसी एक बात का आग्रह न होने से यह ‘अनेकान्तवाद’ के नाम से ही दुनिया में अधिक प्रसिद्ध है| Continue reading “अनेकान्तवादी बनें” »
ज्ञान का सार
एवं खु णाणिणो सारं,
जं न हिंसइ किंचणं
जं न हिंसइ किंचणं
अहिंसा या दया एक धर्म है; किन्तु इसका सम्यक् परिपालन करने से पहले ज्ञान होना आवश्यक है
सम्यग्दृष्टि में स्थिरता
से दिट्ठिमं दिट्ठि न लूसएज्जा
सम्यग्दृष्टि साधक को सत्यदृष्टि का अपलाप नहीं करना चाहिये
सहिष्णुता
पियमप्पियं सव्वं तितिक्खएज्जा
प्रिय हो या अप्रिय-सबको समभाव से सहना चाहिये
आत्मविजय
सव्वं अप्पे जिए जियं
अपने को जीतने पर सबको जीत लिया जाता है
अप्रमत्त या प्रमत्त
सव्वओ पमत्तस्स भयं,
सव्वओ अप्पमत्तस्स नत्थि भयं
सव्वओ अप्पमत्तस्स नत्थि भयं
मत्त को सब ओर से भय रहता है, किन्तु अप्रमत्त को किसी भी ओर से भय नहीं रहता
बोधिरत्न की सुदुर्लभता
बहुकम्मलेवलित्ताणं बोही
होइ सुदुल्लहा तेसिं
होइ सुदुल्लहा तेसिं
जो आत्माएँ बहुत अधिक कर्मों से लिप्त हैं, उनके लिए बोधि अत्यन्त दुर्लभ है