इच्छाओं को रोकने से ही मोक्ष प्राप्त होता है
इच्छानिरोध
चार श्रावक
पडागसमाणे, ठाणुसमाणे, खरकंटगसमाणे
श्रमणोपासक चार प्रकार के होते हैं – दर्पण के समान (स्वच्छ हृदय वाले), पताका के समान (चञ्चल हृदय वाले), स्थाणु के समान (दुराग्रही) और तीक्ष्ण कण्टक के समान (कटुभाषी)
आत्महित का अवसर
आत्महित का अवसर मुश्किल से मिलता है
आयु घट रही है|
एक ही झपाटे में जैसे बाज बटेर को मार डालता है, वैसे ही आयु क्षीण होने पर मृत्यु भी जीवन को हर लेती है
दुरुक्त कैसा होता है ?
वेराणुबंधीणि महब्भयाणि
वाणी से बोले हुए दुष्ट और कठोर वचन जन्मजन्मान्तर के वैर और भय के कारण बन जाते हैं
अनुभव से सच्चाई खोजो
स्वयं सत्यान्वेषण करना चाहिये
विरक्त साधक
जहा से सुक्कगोलए
मिट्टी के सूखे गोले के समान विरक्त साधक कहीं भी चिपकता नहीं है
श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म
धर्म के दो रूप हैं – श्रुतधर्म (तत्त्वज्ञान) और चारित्रधर्म (नैतिकता)
गुणाकांक्षा
जब तक शरीरभंग (मृत्यु) न हो तब तक गुणाकांक्षा रहनी चाहिये
विषयों की तो सभी प्राणी कामना करते रहते हैं; किंतु विवेकी व्यक्ति गुणों की कामना करते हैं| Continue reading “गुणाकांक्षा” »
खून का दाग खून से नहीं धुलता
पक्खालिज्जमाणस्स णत्थि सोही
रक्त-सना वस्त्र रक्त से ही धोया जाये तो वह शुद्ध नहीं होता