कडं कडेत्ति भासेज्जा, अकडं नो कडेत्ति य
किये हुए को कृत और न किये हुए को अकृत कहना चाहिये
किये हुए को कृत और न किये हुए को अकृत कहना चाहिये
अहिंसा त्रस एवं स्थावर समस्त भूतों (प्राणियों) का कल्याण करनेवाली है
सत्य, हित, मित और ग्राह्य वचन बोलें
भगवान ने सर्वत्र अनिदानता (निष्कामता) की प्रशंसा की है
यथावसर संचित धन को तो अन्य व्यक्ति उड़ा लेते हैं और परिग्रही को अपने पापकर्मों का दुष्फल स्वयं भोगना पड़ता है
जो जन (कामनाओं को) पार कर गये हैं, वे सचमुच ही मुक्त हैं
साधक कामी बनकर कामभोगों की कामना न करे| उपलब्ध को भी अनुपलब्ध समझे| प्राप्त भोगों पर भी उपेक्षा करे|
पुत्र चार प्रकार के होते हैं – अतिजात, अनुजात, अवजात और कुलांगार
कुशल पुरुष न बद्ध होता है, न मुक्त
खाने-पीने की मात्रा के ज्ञाता बनो