तरियव्वो गुणोदहिं
सद्गुण-साधना का कार्य भुजाओं से समुद्र तैरने के समान है
सद्गुण-साधना का कार्य भुजाओं से समुद्र तैरने के समान है
धर्म के साधनों का विज्ञान से समन्वय करना चाहिये
जिस श्रद्धा के साथ निष्क्रमण किया है, उसी श्रद्धा के साथ विस्त्रोतसिका (शंका) छोड़कर उसका अनुपालन करना चाहिये
ब्रह्मचर्य तपों में उत्तम है
मनसंयम, वचनसंयम, शरीरसंयम और उपकरणसंयम – ये संयम के चार प्रकार हैं
चाहे भिक्षुक हो, चाहे गृहस्थ; जो सुव्रत है, वह स्वर्ग पाता है
व्यक्ति तभी तक अपने को शूरवीर मानता है, जब तक विजेता को नहीं देख लेता
शक्ति में भी कोई लाखों से बड़ा है; तो हजारों से छोटा भी हो सकता है; क्यों कि दुनिया बहुत बड़ी है| प्रत्येक सेर के लिए कहीं-न-कहीं सवासेर अवश्य मौजूद है| ऐसी अवस्था में आसपास के लोगों से अधिक योग्यता पा कर ही अपने को कोई यदि दुनिया में सबसे बड़ा मान बैठता है; तो यह उसकी भूल है| किसी दिन यदि उसे कोई अपने से बड़ा व्यक्ति मिल गया; तो उस दिन उसका सारा घमण्ड चूर-चूर हो जायगा| समझदार व्यक्ति इसीलिए कभी अपनी योग्यताओं का घमण्ड नहीं करते|
जो लोग ऐसा करते हैं, वे अविवेकी हैं| ऐसे लोग जब तक अपने से अधिक शक्तिशाली विजेता को नहीं देख लेते, तब तक अपने आप को शूरवीर मानते रहते हैं|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/3/1/1
पाप करनेवाला अपने ही कर्मों से पीड़ित होता है
सम्यग्दर्शन के अभाव में ज्ञान प्राप्त नहीं होता और ज्ञान के अभाव में चारित्र-गुण प्राप्त नहीं होते
सभी काम दुःखप्रद होते हैं