कृत कर्मों का (फल भोगे बिना) छुटकारा नहीं होता
यही बात कर्मों के विषय में कही जा सकती है| यदि कोई कर्म करता है; तो उसकी आत्मा उससे बँध जाती है| शुभ कर्मों का भी बन्ध होता है और अशुभ कर्मों का भी| बेड़ी सोने की बनी हो या लोहे की, बॉंधेगी अवश्य| जिस व्यक्ति को बेड़ी पहनाई जाती है, उसे निर्धारित अवधि तक बन्धन में रहने के बाद ही मुक्ति मिलती है और मुक्ति मिलने तक उसे यातना भोगनी पड़ती है| इसी प्रकार शुभाशुभ कर्मों का बन्धन भी निर्धारित अवधि तक रहता है और जब तक रहता है, तब तक उसकी वेदना भोगनी पड़ती है – चाहे वह अनुकूल (सुख) हो, चाहे प्रतिकूल (दुःख)|
शुभाशुभ कर्मों का यदि बन्ध हो चुका है; तो उनका शुभाशुभ फल भोगना अनिवार्य है – भविष्य में कर्म न किये जायें तो भी कृत कर्मों का फल भोगना ही पड़ेगा, अन्यथा मुक्ति नहीं हो सकती|
- उत्तराध्ययन सूत्र 4/3
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