जीवियं चेव रूवं च, विज्जुसंपाय चंचलं
जीवन और रूप विद्युत् की गति के समान चंचल होते हैं
जीवन की तरह रूप भी नश्वर है| शरीर ज्यों-ज्यों अवस्था बीतती जाती है, बूढ़ा होता जाता है| यौवन में जो सौन्दर्य होता है, बुढ़ापे में वह क्षीण होने लगता है- मांसल एवं पुष्ट शरीर पर झुर्रियॉं पड़ जाती हैं,आँखे भीतर धँस जाती हैं, बाल सफेद हो जाते हैं, शरीर कमजोर हो जाता है, थोड़े से परिश्रम का अवसर आने पर भी शरीर थक जाता है और निर्बलता के कारण विविध रोगों का शरीर पर आक्रमण होता रहता है| इसलिए जब तक शरीर स्वस्थ है, परोपकार द्वारा उसका सदुपयोग किया जाना चाहिये|
- उत्तराध्ययन सूत्र 18/13
Universal Truth