न चित्ता तायए भासा
कुओ विज्जाणुसासणं
कुओ विज्जाणुसासणं
विचित्र (लच्छेदार) भाषाएँ भी (दुराचारी की दुर्गति से) रक्षा नहीं कर सकतीं, फिर विद्यानुशासन (पाण्डित्य) की तो बात ही क्या?
इससे स्पष्ट हो जाता है कि ज्ञान की वृद्धि का सम्बध भाषा से नहीं; बल्कि साहित्य से है| जो जितना अधिक साहित्य पढ़ेगा, वह उतना अधिक विद्वान होगा; परन्तु जहॉं तक दुर्गति से बचने का सवाल है वहॉं न भाषाज्ञान काम आता है और न पांडित्य ही|
दुर्गति से आत्मा की रक्षा करने वाली वस्तुएँ हैं – सुशीलता, चरित्रपरायणता, परोपकारिता आदि; भाषा या पांडित्य नहीं|
- उत्तराध्ययन सूत्र 6/11
Jai jinendra. Here it not the language that is referred to Chita. Here a very important difference is cited between Vidya and Knowledge.According to my thinking the question of language in terms of either English or any other language is not here.