धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति
सद्गृहस्थ धर्मानुकूल ही आजीविका करते हैं
परन्तु धन या पैसा जुटाने के लिए जो काम करना पड़ता है, उसे वृत्ति या आजीविका कहते है| आजीविका की इस प्रवृत्ति में हिंसा न हो – झूठ न हो – धोखा न हो – कोई पाप न हो; तो प्रवृत्ति शुद्ध कहलायेगी – धर्मानुकूल कहलायेगी|
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – ये चार पुरुषार्थ कहलाते हैं| इनमें सबसे पहला धर्म ही है| अर्थ उसके बाद रखा गया है| जीवन में धर्म की आवश्यकता मुख्य है, अर्थ की गौण| अर्थ (संपत्ति) न्यायोपार्जित हो-धर्मानुकूल हो, तभी वह पवित्र होगा – यही इस क्रम से सूचित होता है | सद्गृहस्थों की आजीविका सदा धर्मानुकूल होती है|
- सूत्रकृतांग सूत्र 2/2/36
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