अस्स दुक्खं ओ न परियाइयति
कोई किसी दूसरे के दुःख को बाँट नहीं सकता
हम जिस प्रकार रुपये-पैसे अथवा अन्य उपयोगी वस्तुएँ कुटुम्बियों को-मित्रों एवं साथियों को बॉंट सकते हैं, वैसे दुःख नहीं बॉंट सकते| न हम अपना दुःख दूसरों में वितरित कर सकते हैं और न दूसरों का दुःख स्वयं झेल सकते हैं|
जिस प्रकार हमारे पढ़ने से दूसरे विद्वान नहीं बन सकते अथवा दूसरों के विद्याध्ययन करने से हम विद्वान नहीं हो सकते, उसी प्रकार दूसरों के दुःख को हम नहीं भोग सकते और हमारे दुःख को दूसरे नहीं भोग सकते|
जो भोजन करेगा, वही तृप्त होगा| कोई भी भूखा व्यक्ति दूसरे की तृप्ति का अनुभव स्वयं नहीं कर सकता| ठीक उसी प्रकार कोई सुखी व्यक्ति किसी दूसरे के दुःख को बाँट नहीं सकता|
- सूत्रकृतांग सूत्र 2/1/13
CORRECT.