समुप्पायमजाणंता, कहं नायंति संवरं|
आस्रव को न जानने वाले संवर को कैसे जान सकते है?
अब सोचना यह है कि नौका में जो पानी आ रहा है, वह केवल चिल्लाने से तो बन्द हो नहीं सकता| तब उसे कैसे बन्द किया जायेगा ? स्पष्ट ही पहले यह खोज करनी होगी कि वे छिद्र कौन-कौनसे हैं, जिनसे पानी आ रहा है और उनका पता लगते ही उन्हें बन्द कर दिया जायेगा तब ही पानी का आना रुक सकेगा|
संसार भी ऐसा ही सरोवर है| कर्मजल का आत्मा रूपी नौका मैं ‘आस्रव’ होता है| उसे रोकने की क्रिया को ‘संवर’ कहते है| परन्तु संवर वही कर सकता है; जो आस्रवों को जान लेता है| क्यों कि आस्रव को न जाननेवाला संवर को कैसे जान सकता है?
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/1/3/10
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