अतिवेलं न हसे मुणी
मुनि कभी मर्यादा से अधिक न हँसे
यह जीवन हँसने के लिए है, रोने के लिए नहीं| दूसरों को हँसाने के लिए है, रुलाने के लिए नहीं| सङ्कटों से रोने वाले की बुद्धि कुण्ठित हो जाती है और तब सङ्कटों से बच निकलने का उपाय भी नहीं सूझ पाता| इसके विपरीत प्रसचित व्यक्ति में बुद्धि का निवास रहता है| सङ्कटों में भी जो व्यक्ति हँसमुख बना रहता है, उसे सङ्कटों से पार निकलने का कोई-न-कोई मार्ग भी अवश्य सूझ जाता है|
मौन रहने वाला मुनि है| उसे भी प्रसचित्त रहना चाहिये – हँसना चाहिये| हँसना बुरा नहीं है, बुरा है मर्यादा से अधिक हँसना – बहुत देर तक हँसना | मुनियों को चाहिये कि वे कभी मर्यादा से अधिक न हँसें|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/6/26
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