1 0 Archive | दशवैकालिक सूत्र RSS feed for this section
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अज्ञानी क्या करेगा ?

अज्ञानी क्या करेगा ?

अन्नाणी किं काही, किं जानाहि सेयपावगं

ज्ञानहीन व्यक्ति क्या करेगा? वह पुण्य पाप को कैसे जानेगा?

द्रव्यगुण पर्यायविषयक बोध को ज्ञान कहते हैं| ज्ञान का अभाव अज्ञान है| अज्ञान के तीन प्रकार हैं – देश अज्ञान, सर्व अज्ञान और भाव अज्ञान| Continue reading “अज्ञानी क्या करेगा ?” »

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प्रेम का नाशक

प्रेम का नाशक

कोहो पीइं पणासेइ

क्रोध प्रीति का नाशक है

प्रेम और क्रोध दोनों किसी स्थान पर एक साथ नहीं रह सकते | जब क्रोध होगा, प्रेम नहीं होगा और जब प्रेम होगा, क्रोध नहीं होगा| दोनों गुण एक दूसरे के विरोधी हैं – एक दूसरे के नाशक हैं| Continue reading “प्रेम का नाशक” »

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झुँझलायें नहीं

झुँझलायें नहीं

थोवं लद्धुं न खिंसए

थोड़ा मिलने पर झुँझलाएँ नहीं

यदि पूछा जाये कि ‘कुछ न मिलना’ अच्छा है या ‘कुछ मिलना’ तो यही उत्तर मिलेगा कि कुछ मिलना अच्छा है; परन्तु कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो टुकड़ों में या खण्डशः कोई वस्तु लेना पसन्द नहीं करते| वे पूर्ण वस्तु पाना चाहते हैं; इसलिए अपूर्ण वस्तु की प्राप्ति पर अप्रसन्न होते हैं| Continue reading “झुँझलायें नहीं” »

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शंका हो तो न बोलें

शंका हो तो न बोलें

जत्थ संका भवे तं तु,
एवमेयं ति नो वए

जिस विषय में अपने को शंका हो, उस विषय में ‘‘यह ऐसी ही है’’ ऐसी भाषा न बोलें

शंका एक ऐसी मनोवृत्ति है, जो हमें अपने अल्पज्ञान या अज्ञान का भान कराती रहती है| अज्ञान के भान से हमें लज्जा आती है और एक प्रकार का मानसिक कष्ट होता है| शास्त्रज्ञान के लिए जब हम आचार्यों या गुरुओं की उपासना करते हैं; तब भी उनके कठोर शब्दों का प्रहार हमें सहना पड़ता है| Continue reading “शंका हो तो न बोलें” »

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मृदुता को अपनाइये

मृदुता को अपनाइये

माणं मद्दवया जिणे

मान को नम्रता या मृदुता से जीतें

आँधी बड़े-बड़े पेडों को उखाड़ फैंकती है; किंतु मैदान में फैली हुई दूब का कुछ नहीं बिगाड़ सकती| ऐसा क्यों? पेड़ घमण्ड से अकड़े हुए रहते हैं, किंतु दूब में नम्रता होती है अर्थात् मृदुता होती है| अकड़ से पेड़ उखड़ जाते हैं, नम्रता से दूब टिकी रहती है| वह अभिमानी व्यक्तियों का मार्गदर्शन करती है कि उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिये| Continue reading “मृदुता को अपनाइये” »

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पूज्य शिष्य

पूज्य शिष्य

जो छंदमाराहयइ स पुज्जो

जो इंगिताकार से स्वीकार करता है वह पूज्य बनता है

जो आवश्यकता और गुरुजनों की इच्छा को समझकर बिना कहे अपने कर्त्तव्य का पालन करता है, वह उत्तम शिष्य है| Continue reading “पूज्य शिष्य” »

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बिना पूछे न बोलें

बिना पूछे न बोलें

अपुच्छिओ न भासेज्जा, भासमाणस्स अन्तरा

बिना पूछे किसी बोलने वाले के बीच में नहीं बोलना चाहिये

सभ्यता कहती है कि यदि कोई आदमी कुछ बोल रहा हो तो जब तक उसका कथन पूर्ण नहीं हो जाता, तब तक सुननेवाले को मौन रहना चाहिये| वादविवाद अथवा शास्त्रार्थ में तो इस नियम का और भी अधिक सावधानी के साथ पालन करने का ध्यान रखना पड़ता है| Continue reading “बिना पूछे न बोलें” »

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विनय का नाशक

विनय का नाशक

माणो विणयणासणो

मान विनय का नाशक है

यहॉं मान का अर्थ-अभिमान है, सन्मान नहीं| जिस प्रकार क्रोध और प्रेम एक-साथ नहीं रह सकते; उसी प्रकार अभिमान और विनय भी एक साथ नहीं रह सकते| Continue reading “विनय का नाशक” »

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श्रेयस्कर आचरण

श्रेयस्कर आचरण

जं सेयं तं समायरे

जो श्रेय (हितकर) हो, उसीका आचरण करना चाहिये

इस चराचर जगत के अधिकांश प्राणी अपनी अदूरदर्शिता के कारण सौन्दर्य एवं माधुर्य के दास बने हुए हैं| दिन-रात वे विषयभोगों का चिन्तन करते रहते हैं| वैषयिक सुख भले ही क्षणिक हो, परन्तु उसे प्राप्त करने के प्रयत्न में जीवन का बहुमूल्य समय लगाते रहते हैं – कहना चाहिये कि व्यर्थ खोते रहते हैं| Continue reading “श्रेयस्कर आचरण” »

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जान कर बोलें

जान कर बोलें

जमट्ठं तु न जाणेज्जा, एवमेयंति नो वए

जिसके विषय में पूरी जानकारी न हो, उसके विषय में ‘‘यह ऐसा ही है’’ ऐसी बात न कहें

जिस विषय में हमें पूरी जानकारी न हो, उस विषय में निश्‍चय पूर्वक कोई बात नहीं कहनी चाहिये, अन्यथा सुनने वालों को जब अन्य स्त्रोतों से यथार्थ ज्ञान हो जायेगा, तब हमारी स्थिति उपहासास्पद बन जायेगी| लोग हम पर विश्‍वास ही नहीं करेंगे| Continue reading “जान कर बोलें” »

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