अन्नाणी किं काही, किं जानाहि सेयपावगं
ज्ञानहीन व्यक्ति क्या करेगा? वह पुण्य पाप को कैसे जानेगा?
ज्ञानहीन व्यक्ति क्या करेगा? वह पुण्य पाप को कैसे जानेगा?
क्रोध प्रीति का नाशक है
थोड़ा मिलने पर झुँझलाएँ नहीं
जिस विषय में अपने को शंका हो, उस विषय में ‘‘यह ऐसी ही है’’ ऐसी भाषा न बोलें
मान को नम्रता या मृदुता से जीतें
जो इंगिताकार से स्वीकार करता है वह पूज्य बनता है
बिना पूछे किसी बोलने वाले के बीच में नहीं बोलना चाहिये
मान विनय का नाशक है
जो श्रेय (हितकर) हो, उसीका आचरण करना चाहिये
जिसके विषय में पूरी जानकारी न हो, उसके विषय में ‘‘यह ऐसा ही है’’ ऐसी बात न कहें