मान को नम्रता या मृदुता से जीतें
अभिमान पर भी हमें विजय पानी है और अभिमानी पर भी| दोनों प्रकार की विजय में विनय अपेक्षित है| विनय से ही सर्वत्र विजय पायी जा सकती है|
अभिमानी के सामने अभिमान का प्रदर्शन करने से समस्या और भी उलझ सकती है| इसके विपरीत अभिमानी के सामने विनय का प्रयोग करने से उसका अभिमान कुछ कम होगा और विनीत के सुव्यवहार को देखकर अभिमानी का भी हृदय प्रभावित होगा| उसमें भी विनय के अंकुर जमेंगे और तब अभिमानी को अपनी भूल का भान होगा| यह विनीत की अभिमानी पर विजय ही तो है?
इसी प्रकार अपने अभिमान पर विजय पाने के लिए हमें विनय का सहारा लेना चाहिये| अभिमान से सारे गुण घटते चले जाते हैं और मृदुता से सारे सद्गुण बढ़ते हैं – पुष्ट होते हैं; अतः अभिमान का नाश करके सद्गुणी बनना हो तो मृदुता को अपनाइये|
- दशवैकालिक सूत्र 8/36
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