पावकम्मं नेव कुज्जा न कारवेज्जा
पापकर्म न स्वयं करना चाहिये और न दूसरों से कराना चाहिये
बहुत-से लोग ऐसे होते हैं, जो स्वयं तो कोई पापचरण नहीं करते; परन्तु दूसरों को पाप के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं| ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार बहुत-से लोग स्वयं तो लड़ाई-झगड़े से दूर रहते हैं, परन्तु दूसरों को उल्टी-सीधी भिड़ाकर लड़ाई भड़काते रहते हैं| दूसरे बेचारे लड़ते हैं – लहूलुहान हो जाते हैं और ये खड़े-खड़े तमाशा देखते रहते हैं| यह बुरी बात है| स्वयं लड़ना भी बुरा है और दूसरों को लड़ाना या दूसरों में लड़ाई भड़काना भी| इसी प्रकार पाप करना भी बुरा है और दूसरों से पाप कराना भी|
ज्ञानीजनों के अनुसार सुख चाहने वालों को चाहिये कि वे स्वयं कभी पाप न करें, न करायें|
- आचारांग सूत्र 1/2/6
No comments yet.
Leave a comment