श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन
राग : भजोरी प्यारो नमिजीणंद.. (भीमपलाश)
में कीनो नहीं तुम बीन और शुं राग.. (२)
दिन दिन वान वधत गुण तेरो,
ज्युं कंचन पर भाग;
औरनमें है कषायकी कालिमा,
सो क्युं सेवा लाग.
…मैं.१
राजहंस तुं मान-सरोवर,
और अशुचि-रूचि काग;
विषय-भुजंगम गरूड तुं कहीये,
ओर विषय-विषनाग.
….मैं.२
और देव जल-छिल्लर सरीखे,
तुं तो समुद्र अथाग;
तुं सुरतरू जन वांछित पूरण,
और तो सूके साग.
…मैं.३
तुं पुरूषोत्तम, तुं हीं निरंजन,
तुं शंकर वड भाग;
तुं ब्रह्मा, तुं बुध्ध महाबल,
तुं हीं ज देव वीतराग.
…मैं.४
सुविधिनाथ तुम गुन फुलनको,
मेरो दिल है बाग;
जस कहे भ्रमर रसिक होय ताको,
लीजे भक्ति पराग.
…मैं.५
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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