असंखयं जीवियं मा पमायए
जीवन क्षणभंगुर है| जिसका मन यहां से विरक्त हो गया, वही परमात्मा में अनुरक्त हो सकता है|
जिन्हें तुमने अपना समझा है, साथ हो गया है दो क्षण का राह पर-सब अजनबी हैं| आज नहीं कल सब छूट जाएंगे| तु अकेले आए हो और अकेले जाओगे| और तुम अकेले हो| इस जगत में सिर्फ एक ही संबंध बन सकता है-और वह संबंध परमात्मा से है; शेष सारे संबंध बनते हैं और मिट जाते हैं| सुख तो कुछ ज्यादा नहीं लाते, दुःख बहुत लाते हैं| सुख की तो केवल आशा रहती है; मिलता कभी नहीं है| अनुभव तो दुःख ही दुःख का होता है|
जगत से टूटते हुए संबंधों को जगत के प्रति वैराग्य बना लो, जगत से प्रेम मुक्त हो जाओ और परमात्मा के चरणों में चढ़ा जाओ|
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
No comments yet.
Leave a comment