श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन
राग : भजोरी प्यारो नमिजीणंद.. (भीमपलाश)
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में कीनो नहीं तुम बीन और शुं
सुविधि जिनेसर पाय नमीने
श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन
राग : केदारो – ‘‘एम धन्नो धणने परचावे रे…’’ ए देशी
सुविधि जिनेसर पाय नमीने, शुभ करणी एम कीजे रे;
अति घणो ऊलट अंग धरीने, प्रह ऊठी पूजीजे रे.
अब मोहे तारो सुमति जिनेश
श्री सुमतिनाथ स्तवन
राग : वाघेश्वरी
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अवधू ! आज सुहागन नारी
आज सुहागन नारी अवधू ! आज सुहागन नारी,
मेरे नाथ आप सुध लीनी कीनी निज अंगचारी.
वीतराग…! तोरा पाय शरणं
श्री सुपार्श्वनाथ जिन स्तवन
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मनडुं हाथन आवे हो, पद्म प्रभ!
श्री पद्मप्रभु जिन स्तवन
राग : मनडुं किम हि न बाजे हो कुंथुजिन…
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शील सुरंगीरे सुलसा महासती
राग : अरणीक मुनिवर चाल्या गोचरी
भाव : सुलसा महासतीना समकित-समता शील नी सुगंध
शील सुरंगीरे सुलसा महासती,
वर समकित गुण धारीजी;
राजगृही पूरे नाग रथिक तणी,
सुलसा नामे नारीजी.
हो अविनाशी
श्री पद्मप्रभु जिन स्तवन
राग : सुण चंदाजी…
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अभिनंदन जिन! दरिसण तरसीए
श्री अभिनंदन जिन स्तवन
राग : धन्यासिरि-सिंधुओ – “आज निहेजो रे दीसे नाईलो रे…’’ ए देशी
अभिनंदन जिन! दरिसण तरसीए,
दरिसण दुरलभ देव;
मत मत भेदे रे जो जई पूछीए,
सहु थापे अहमेव.